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ॐ, ओमकार-प्रणव

अक्षर ब्रह्म – पर ब्रह्म – परमात्मा

अक्षर ब्रह्म – पर ब्रह्म – परमात्मा सनातन धर्म में ‘ब्रह्म’ की अवधारणा उस परमसत्ता के रूप में है, जो सर्वातिशायी, सर्वसमर्थ, सर्वत्र विद्यमान रहने वाली सर्वोच्च शक्ति है। ब्रह्म […]
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षडलिंगस्वरूप प्रणव, सूक्ष्म रूप ॐकार और स्थूल रूप पंचाक्षर मन्त्र का माहात्म्य

प्रणव का अभिप्राय उस ॐकार रुपी सेतु से है जो मनुष्य को भवसागर से पार करता है। प्र नाम है प्रकृति से उत्पन्न संसार रुपी महासागर का। प्रणव इसे पार […]
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ॐकार का क्या महत्व है ? ॐकार जप का क्या लाभ है?

जिन अव्यक्त, निर्गुण, निराकार श्री भगवान, जिनके सब ओर चरण, मस्तक और कंठ हैं, जो इस विश्व के स्वामी तथा विश्व को उत्पन्न करने वाले हैं, उन विश्वरूप परमात्मा का […]
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गृहस्थ आश्रम में सुखी रहने का क्या उपाय है? ॐ का उच्चारण क्यों किया जाता है ?

इस संसार में केवल दो ही प्रकार ले लोग सुखी हैं – या तो वो जो अत्यंत अज्ञान ग्रस्त हैं या वो जो बुद्धि आदि से अनंत श्री भगवान को […]
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