१. सुलभा पुरुषा राजन सततं प्रियवादिन:। अप्रियस्य च पथ्यसय वक्ता श्रोता च दुर्लभ: ।। सदा प्रिय वचन बोलने वाले पुरुष सर्वत्र सुलभ होते हैं, परन्तु जो अप्रिय होने पर भी […]Read more
१ न तद्दानं प्रशसन्ति येन वृतिविृपद्यते। दानं यज्ञस्तप: कर्म कोले वृत्तिमतो यत:।। (८। १९। ३६ ) विद्वान पुरुष उस दान की प्रशंसा नहीं करते, जिसके बाद जीवन निर्वाह के लिए […]Read more