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अतिथि देवो भव:

हिन्दू सभ्यता में ‘अतिथि देवो भव:’ की संतुती क्यों की गयी है? अतिथि को देवतुल्य क्यों माना जाता है? अतिथि की क्या परिभाषा है ?

मनुस्मृति में कहा गया है : संपराप्ताय त्वतीथये प्र्द्द्यादासनोदके। अन्न चैव यथाशक्ति सत्कृत्य विधिपूर्वकम।। (आए हुए अतिथि का आसान, जल और अन्न से यथा शक्ति सत्कार करना चाहिए) श्री विष्णुपुराण […]
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