शास्त्रों में धर्म के तीस लक्षण कहे गए हैं। इन लक्षणो का विचार तथा आचरण सभी मनुष्यों का परम धर्म है । इनके पालन से सर्वात्मा श्रीभगवान प्रसन्न रहते है […]Read more
सनातन धर्म शास्त्रों में नित्य देवता ओर नैमित्तिक देवता दो प्रकार के देवता कहे गये हैं। नित्य देवता वे हैं, कि जिनका पद नित्य स्थायी है। वसुपद, रुद्रपद, आदित्यपद, […]Read more
यह एक विवादित प्रश्न है जिसके बारे में ज्ञान का सर्वथा अभाव पिछले कुछ वर्षो तक था। वर्तमान काल में समाज में कुछ ज्ञान प्रचारित हुआ है। परंतु उसके स्रोत […]Read more
हमारे बंधु श्री राजन जौहर जी को साधुवाद जिन्होने अति महत्वपूर्ण सवाल पूछा: भक्ति और भक्तों के प्रसंग में ना चाहते हुए भी यह कहना पड़ता है की अपने वर्ग […]Read more
श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ में अर्गला स्तोत्र के उपरान्त ‘कीलक”स्तोत्र का पाठ किया जाता है। कीलक स्त्रोत्र के विषय में अनेको भ्रांतियां समाज में उपस्थित हैं। प्राय: यह कह […]Read more
इस मन्त्र को नवार्ण मंत्र भी कहा जाता है जो देवी भक्तों में सबसे प्रशस्त मंत्र माना गया है। इस मन्त्र के जाप से महासरस्वती, महाकाली तथा महालक्ष्मी माता की […]Read more
जगन्मार्तातस्तव चरण सेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया। तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥ हे जगदम्बा माता ! मैंने आपके […]Read more
श्री कृष्ण कृत त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी । त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका ।। हे देवी ! आप ही सबकी जननी, मूल-प्रकृति ईश्वरी हो, आप ही सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति […]Read more
1. ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा । बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥ वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं । […]Read more
सनातन धर्म में वर्ष में दो बार – शरत काल तथा वसंत काल के नवरात्रों में माता जगदम्बा की पूजा का विधान है। वसंत तथा शरत दोनों ही ऋतुएं मनुष्य […]Read more