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भगवान शिवजी को ‘पशुपति’ और ‘त्रिपुरारि’ क्यों कहा जाता है?

जब शिवनंदन श्री कार्तिकेय स्वामी जिन्हें स्कन्द भी कहा जाता है ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके तीनों पुत्र तारकाक्ष, विद्युनमालि और कमलाकाक्ष ने उत्तम भोगों का परित्याग […]
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शिवलिंग क्या है? शिवजी की पूजा मूर्ति और लिंग रूप में क्यों होती है?

लिंग शब्द का अर्थ है चिन्ह, प्रतीक। भगवान शिव क्योंकि परमपिता परमात्मा के अंश है और स्वयं ब्रह्मस्वरूप हैं इसीलिए निष्काम (निराकार) कहे गए हैं। इसी प्रकार से रूपवान होने […]
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श्रीमदवाल्मीकि रामायण – ज्ञान माला – अरण्यकाण्ड

१. सुलभा पुरुषा राजन सततं प्रियवादिन:। अप्रियस्य च पथ्यसय वक्ता श्रोता च दुर्लभ: ।। सदा प्रिय वचन बोलने वाले पुरुष सर्वत्र सुलभ होते हैं, परन्तु जो अप्रिय होने पर भी […]
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श्रीमदभगवत महापुराण – वैवाहरिक ज्ञान माला

१ न तद्दानं प्रशसन्ति येन वृतिविृपद्यते। दानं यज्ञस्तप: कर्म कोले वृत्तिमतो यत:।। (८। १९। ३६ ) विद्वान पुरुष उस दान की प्रशंसा नहीं करते, जिसके बाद जीवन निर्वाह के लिए […]
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हमारे देश का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा?

पूर्व काल में भारत वर्ष को अभाजन खंड कहा जाता था । श्री भगवान के आठवें अवतार श्री ऋषभ देव के पुत्रों में महायोगी भरतजी सबसे बड़े तथा सबसे अधिक […]
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प्रभु नाम जप का क्या फल है ? क्या किसी विशेष भगवान या सहस्त्र नाम के जप से ही उचित फल मिलता है? क्या संकीर्तन केवल मंडली में या ऊँची आवाज़ में ही सफल होता है ? क्या प्रभु नाम का जप केवल १०८ मनके की माला के साथ ही किया जाना चाहिए?

जो मनुष्य अपने पापों का क्षय करके इस संसार सागर से पार जाना चाहते हैं उन्हें तमोगुणीऔर रजोगुणी भूपतियों की उपासना ना करके सत्वगुणी श्री भगवान और उनके उनके अंश […]
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श्री भगवान के 24 अवतार

श्री परम पिता परमात्मा का दिव्या पुरुष रूप जिसे श्री नारायण कहते हैं अनेक अवतारों का अक्षय कोष हैं । इन्ही से सारे अवतार प्रकट होते हैं। जैसे अगाध सरोवर […]
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परमपिता परमात्मा द्वारा देवताओं की उत्पत्ति

सृष्टि के आरम्भ में श्री भगवान ने देखा की सम्पूर्ण विश्व जल, वायु, तेज़ आदि तत्वों से विहीन है। जगत को इस शून्यावस्था मैं देख कर भगवान ने स्वेच्छा से […]
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श्री भगवान कौन हैं ?

श्री भगवान सारे जगत की उत्पत्ति का आधार हैं। वह ही जगत के ईश्वर अर्थात जगदीश्वर हैं। उनको विभिन्न नामों विष्णु, शिव, ब्रह्मा और अनेक देवी देवताओं के नाम से […]
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भक्तियोग और भक्तों के विभिन्न प्रकार

साधकों के भाव के अनुसार भक्तियोग का अनेक प्रकार से प्रकाश होता है, क्योंकि भक्त के स्वाभाव और गुणों के भेद से मनुष्यों के भाव में विभिन्नताएँ आ जाती है। […]
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