जब शिवनंदन श्री कार्तिकेय स्वामी जिन्हें स्कन्द भी कहा जाता है ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके तीनों पुत्र तारकाक्ष, विद्युनमालि और कमलाकाक्ष ने उत्तम भोगों का परित्याग […]Read more
लिंग शब्द का अर्थ है चिन्ह, प्रतीक। भगवान शिव क्योंकि परमपिता परमात्मा के अंश है और स्वयं ब्रह्मस्वरूप हैं इसीलिए निष्काम (निराकार) कहे गए हैं। इसी प्रकार से रूपवान होने […]Read more
१. सुलभा पुरुषा राजन सततं प्रियवादिन:। अप्रियस्य च पथ्यसय वक्ता श्रोता च दुर्लभ: ।। सदा प्रिय वचन बोलने वाले पुरुष सर्वत्र सुलभ होते हैं, परन्तु जो अप्रिय होने पर भी […]Read more
१ न तद्दानं प्रशसन्ति येन वृतिविृपद्यते। दानं यज्ञस्तप: कर्म कोले वृत्तिमतो यत:।। (८। १९। ३६ ) विद्वान पुरुष उस दान की प्रशंसा नहीं करते, जिसके बाद जीवन निर्वाह के लिए […]Read more
पूर्व काल में भारत वर्ष को अभाजन खंड कहा जाता था । श्री भगवान के आठवें अवतार श्री ऋषभ देव के पुत्रों में महायोगी भरतजी सबसे बड़े तथा सबसे अधिक […]Read more
जो मनुष्य अपने पापों का क्षय करके इस संसार सागर से पार जाना चाहते हैं उन्हें तमोगुणीऔर रजोगुणी भूपतियों की उपासना ना करके सत्वगुणी श्री भगवान और उनके उनके अंश […]Read more
श्री परम पिता परमात्मा का दिव्या पुरुष रूप जिसे श्री नारायण कहते हैं अनेक अवतारों का अक्षय कोष हैं । इन्ही से सारे अवतार प्रकट होते हैं। जैसे अगाध सरोवर […]Read more
सृष्टि के आरम्भ में श्री भगवान ने देखा की सम्पूर्ण विश्व जल, वायु, तेज़ आदि तत्वों से विहीन है। जगत को इस शून्यावस्था मैं देख कर भगवान ने स्वेच्छा से […]Read more
श्री भगवान सारे जगत की उत्पत्ति का आधार हैं। वह ही जगत के ईश्वर अर्थात जगदीश्वर हैं। उनको विभिन्न नामों विष्णु, शिव, ब्रह्मा और अनेक देवी देवताओं के नाम से […]Read more
साधकों के भाव के अनुसार भक्तियोग का अनेक प्रकार से प्रकाश होता है, क्योंकि भक्त के स्वाभाव और गुणों के भेद से मनुष्यों के भाव में विभिन्नताएँ आ जाती है। […]Read more