अक्षर ब्रह्म – पर ब्रह्म – परमात्मा सनातन धर्म में ‘ब्रह्म’ की अवधारणा उस परमसत्ता के रूप में है, जो सर्वातिशायी, सर्वसमर्थ, सर्वत्र विद्यमान रहने वाली सर्वोच्च शक्ति है। ब्रह्म […]Read more
वन्दे मातरम् महामन्त्र का विरोध क्यों? क्या जननी जन्मभूमि के प्रति प्रेम और श्रद्धा प्रदर्शित करना धार्मिक आस्थाओं के विरुद्ध हो सकता है ? आज भी यह प्रश्न कई बार […]Read more
सनातन धर्म शास्त्रों में नित्य देवता ओर नैमित्तिक देवता दो प्रकार के देवता कहे गये हैं। नित्य देवता वे हैं, कि जिनका पद नित्य स्थायी है। वसुपद, रुद्रपद, आदित्यपद, […]Read more
यह एक नई भ्रान्ति समाज में व्याप्त है। कुछ बुद्धिमान व्यक्तियों का मत है की यह सब वन+नर अर्थात वन में वास करने वाले नर थे अतः इनका बन्दर प्रजाति […]Read more
यह सवाल हमारे बंधु श्री Sayanha Kshtri द्वारा पूछा गया था। सायनहा जी सवाल पूछने के लिए धन्यवाद और विलम्ब के लिए हम क्षमा चाहते हैं। सवाल उत्तम है क्यूँकि […]Read more
सर्वशक्तिमान भगवान ने जब देखा की आपस में संगठित ना होने कारण मेरी महत्व आदि शक्तियाँ विश्व रचना में असमर्थ हो रही हैं तब उन्होंने कालशक्ति को स्वीकार कर के […]Read more
ब्रह्मांड के गर्भरूपी जल में निवास करने वाले श्री भगवान ने ब्रह्माजी के अंत:करण में प्रवेश किया और ब्रह्मजी भगवान के पूर्व कल्पों में निश्चित की हुई नामरूपी व्यवस्था के […]Read more
रावण ऋषि विश्रवा और कैकसी का पुत्र था। जन्म के समय उसकी शर्रीरिक बनावट अत्यंत विकराल थी, उसके दस मस्तक, बड़ी बड़ी दाढ़ें, तांबे जैसे होंठ, बीस भुजाएं, विशाल मुख […]Read more
श्री राम शरणम् समस्तजगतां, राम विना का गति। रामेण प्रतिहन्ते कलिमलं, रामाय कार्यं नम:। रामात त्रस्यति कालभीमभुजगो, रामस्य सर्वं वशे । रामे भक्ति खण्डिता भवतु में, राम त्वमेवाश्रय ।। श्री […]Read more