पुराण शास्त्र
दर्शन शास्त्र, स्मृति शास्त्र आदि की तरह पुराण शास्त्र भी उपयोगी शास्त्र हैं क्योंकि वेदों में जिन तत्वों का वर्णन कठिन और गूढ़ वैदिक भाषा द्वारा किया गया है, पुराण में उन्ही गूढ़ तत्वों को सरल लौकिक भाषा में समझाया गया है। यही कारण है की पुराण शास्त्रों को इतना महत्त्व दिया जाता है। छांदग्योनिशद में कहा गया है –
ऋग्वेदं भगवोऽध्येमी यजुर्वेदम सामवेदमथ्ववरणं।
चतुर्थमितिहासं पुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम।।
मैं ऋग यजु साम और अथर्ववेद को जानता हूँऔर पांचवां वेद इतिहास पुराण भी मैं जानता हूँ।
श्री भगवान् वेदव्यास जी कहते हैं की महापुराण अट्ठारह है:
अष्टादशं पुराणानि पुराणज्ञा: प्रचक्षते।
ब्रह्मं पाद्यं वैष्णवं च शैवं भागवतं तथा ।।
तथान्यं नारदीयश्च मार्कण्डेश्च सप्तमम ।
आग्नेयमष्टचैव भविष्यं नवमं स्मृतम ।।
दशम ब्रह्मवैवर्तं लैंगमेकडशं स्मृतम ।
वाराहं द्वादशचैव स्कान्दं चैव त्रयोदशम ।।
चतुर्दशम वामनश्चय कौमर पंचदशं; स्मृतम।
मात्स्यं च गरूड़श्चैव् ब्रह्मांडश्चैव् तत परम ।।
ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, लिंग पुराण, वराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मतस्य पुराण, गरुड़पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण यही अट्ठारह महापुराण हैं
इसी प्रकार उपपुराण भी अट्ठारह हैं:
आद्यं सनत्कुमारोक्तं नारसिंहमथापरम्।
तृतीयं वायवीयं च कुमारेणनुभाषितम ।।
चतुर्थं शिव धर्माख्यां साक्षानंदीशभाषितम ।
दुर्वासोक्तमाश्चरं नारदीयमत: परम ।।
नंदिकेश्वरयुग्मश्च तथैवाशनसेरितम ।
कापिलं वरुणं सामबं कालिकाह्वयमेव च।।
माहेश्वरं तथा देवी ! देवं सव्वार्थसायकम ।
पराषरोक्तमपरं मारीचं भास्कराह्वयम ।।
सनत्कुमारोक्त आद्य, नारसिंह, कुमारोक्त, वायवीय, नंदीश भाषित, शिवधर्म, दुर्वासा, नारदीय, नंदिकेश्वर के दो, उशना, कपिल, वारुण, साम्ब, कालिका, महेश्वर, दैव, पराशर, मारीच, भास्कर यह अट्ठारह उपपुराण हैं।
उपरोक्त महापुराण तथा, उपपुराणों के अतिरिक्त और भी अनेक पुराण मिलते हैं जो की औपपुराण हैं, जिनकी संख्या भी अट्ठारह है। इस प्रकार से पुराणशास्त्र महापुराण, उपपुराण, औपपुराण, इतिहास और पुराणसंहिता इन पांच भागों में विभक्त है।
पुराणों के अतिरिक्त जो इतिहासग्रन्थ हैं – श्री रामायण व् महाभारत वे भी पुराणों के अंदर ही हैं। हरिवंश पुराण महाभारत के अंतर्गत ही माना जाता है। पुराण और इतिहास शास्त्रों को कुछ आचार्यों ने कर्म विज्ञान प्रधान – महाभारत , ज्ञानविज्ञान प्रधान – रामायण और पंचोउपासना प्रधान – अन्य पुराण में भी विभक्त किया है। वास्तव में अन्य पुराणों में पंचोउपासना की पुष्टि की गयी है। जगजनम को आदिकारण मान कर ही विभिन्न पुराणों में श्रीविष्णु, श्री सूर्य, श्री भगवती, श्री गणपति और श्री सदाशिव की उपासना का समर्थन किया गया है।
प्रधान देवताओं की स्तुति के कारण ही विभिन्न मतों के द्वारा विभिन्न पुराणों को महापुराण माना जाता है। महापुराणों के लक्षण का वर्णन इस प्रकार किया गया है
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।
वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥
महाभूतों की सृष्टि, समस्त चराचर की सृष्टि, वंशावली, मन्वन्तर वर्णन और प्रधान वंशो के व्यक्तियों का विवरण, पुराणों के ये पांच लक्षण हैं।
पुराणों में तीन प्रकार की भाषा वर्णित की गयी है – समाधि, लौकिक तथा परकीय। इसी कारण से पुराणों के मूल रहस्य को समझने में भ्रान्ति होती है जो उपयुक्त ज्ञान के द्वारा दूर हो सकता है। पुराणों में अनेकों ऐसी कथाएं मिलती हैं जो लौकिक भाषा में वर्णित हैं परन्तु सभी का आध्यात्मिक भाव निकालने पर कथाओं का सही भाव निकला जा सकता है। उदाहरण के लिए शिवमहापुराण में एक कथा आती है की नारायण जल के अंदर सोये हुए थे, उनके नाभि कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुए फिर उन दोनों में यह मतभेद हो गया की कौन बड़े हैं, उनमे वादविवाद चल ही रहा था की उनके बीच एक प्रचंड ज्योतिर्लिंग प्रकट हो गया, ब्रह्मा जी ऊपर की ओर गए और विष्णुजी नीचे की ओर परन्तु कोई भी उसके आदि या अंत का पता नहीं लगा पाया, जिससे उनको पता चला की उनके बीच कोई तीसरा भी है जो सबसे श्रेष्ठ हैं, इस बात को जान कर उन्होंने विवाद बंद कर दिया इत्यादि। यदि लौकिक भाषा में पढ़ा जाए जो इसका साधारण अर्थ यह निकलता है की भगवान् सदाशिव ही तीनो देवताओं में सर्वप्रथम है परन्तु यदि आध्यात्मिक दृष्टि से इसका अर्थ यह निकलता है यह अनादि अनंत शरीररूपी विराटपुरुष ही सच्चिदानंद परब्रह्म का चिन्ह या लिंग है। क्योंकि यह कथा शिवपुराण की है और पुराण भावप्रधान ग्रन्थ है तो शिवपुराण के शिव साधारण शिव नहीं है परन्तु परब्रह्म परमात्मा स्वरुप हैं। यही अर्थ श्रीविष्णुपुराण, ब्रह्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में वर्णित कथाओं का निकलना चाहिए।
इति पुराणशास्त्र।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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