जय माता दी
जगन्मार्तातस्तव चरण सेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥
हे जगदम्बा माता ! मैंने आपके चरणों की सेवा कभी नहीं की, हे भगवती ! आपको अधिक धन भी समर्पित नहीं किया। तब भी मुझ जैसे अधम पर जो तुम अनुपम स्नेह करती हो , इसका कारण यही है कि संसार में कुपुत्र पैदा हो सकते हैं, किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती।
“माँ ” दो अक्षर के इस शब्द में कितना अमृत भरा हुआ है, इसका वर्णन नहीं किया जा सकता। पुत्र अपनी माँ को जब “माँ” कह कर पुकारता है। तब माता का ह्रदय प्रेम से विह्वल हो जाता है। इसी प्रकार जब भक्तजन “माँ” “माँ” कह कर माँ जगदम्बा को पुकारते हैं तब उनके ह्रदय में दिव्य आनंद की धारा बहने लगती है। संतति अपनी माता को प्रेम से पुकारते हैं और माता अपने बच्चों की समस्त बाधाओं को हरने के लिए उपस्थित हो जाती है।
।।जय माता दी ।।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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