सनातन धर्म में नवरात्रों की समाप्ति पर ९ कन्याओं का पूजन क्यों किया जाता है ?
सनातन धर्म में वर्ष में दो बार – शरत काल तथा वसंत काल के नवरात्रों में माता जगदम्बा की पूजा का विधान है। वसंत तथा शरत दोनों ही ऋतुएं मनुष्य के लिए रोग उत्पन्न करने वाली हैं तथा उपवास व्रत के द्वारा नवरात्र व्रत से मनुष्य का आत्मकल्याण होता है।
इस पृथ्वी लोक में जितने भी प्रकार के व्रत एवं दान हैं, वे इस नवरात्र के तुल्य नहीं हैं क्योंकि यह व्रत सदा धन धान्य प्रदान करने वाला, सुख तथा सनातन की वृद्धि करने वाला, आयु तथा आरोग्य प्रदान करने वाला और स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्ति का कारण है।
किसी भी कामना को पूर्ण करने वाला यह व्रत अत्यंत कल्याणकारी तथा सौभाग्यशाली है। पूरे नवरात्र उपवास करने में असमर्थ लोगों के लिए तीन दिन का उपवास भी यथोक्त फल प्रदान करने वाला होता है। भक्तिभाव से केवल सप्तमी, अष्टमी और नवमी – इन तीन रात्रिओं में उपवास तथा देवी की पूजा करने से सभी सुख सुलभ हो जाते हैं। पूजन, हवन तथा कुमारी पूजन से नवरात्र व्रत सम्पूर्ण होता है।
कुमारी पूजन विधि में माता के नौ रूपों का पूजन कन्या रूप में किया जाता है। एक वर्ष से कम उम्र की कन्या तथा १० वर्ष से अधिक उम्र की कन्या की पूजा नहीं की जाती। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कलिका, सात वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है।
कुमारी कन्या पूजित हो कर दुःख तथा दरिद्रता का नाश करती है ; वह शत्रुओं का क्षय और धन, आयु तथा बल की सृद्धि करती है।
त्रिमूर्ति कन्या का पूजन करने से धर्म अर्थ काम की पूर्ती होती है, धन धान्य का आगम होता है और पुत्र पौत्र आदि की वृद्धि होती है।
जो विद्या, विजय, राज्य तथा सुख की कामना करता हो उसे सभी कामनाएं प्रदान करने वाली कल्याणी कन्या का पूजन करना चाहिए।
शत्रुओं का नाश करने के लिए भक्तिपूर्वक कलिका कन्या का पूजन करना चाहिए।
धन तथा ऐश्वर्य की अभिलाषा रखने वाले को चंडिका कन्या की अर्चना करनी चाहिए।
सम्मोहन, दुःख दारिद्र्य के नाश तथा संग्राम में विजय के लिए शाम्भवी कन्या की पूजा करनी चाहिए।
क्रूर शत्रु के विनाश के लिए तहत उग्र कर्म की साधना के निमित परलोक में सुख पाने के लिए दुर्गा कन्या की भक्तिपूर्वक आराधना करनी चाहिए।
मनुष्य को अपने मनोरथ की सिद्धि तथा रोगनाश के लिए सुभद्रा की विधिवत आराधना करनी चाहिए।
कन्या पूजन में नवरात्रपर्यन्त प्रतिदिन कन्या पूजन का विधान है। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन कन्या पूजन करने में असमर्थ है तो उसको अष्टमी तिथि को विशेष रूप से अवश्य कन्या पूजन करना चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने वाली भगवती भद्र काली करोड़ों योगिनिओ सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।
ना तातो ना माता ना बन्धुर्न दाता ,
ना पुत्रो ना पुत्री ना ना भृत्यो न भर्त।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव,
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।
हे भवानी, पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री, भृत्य, स्वामी, स्त्री,विद्या और वृत्ति – इनमे से कोई मेरा नहीं है। हे देवी ! एकमात्र तुम्ही मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो।
जय दुर्गे भवानी, सर्व दुःख नाशनी
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय: ।।
(सन्दर्भ – श्रीमददेवीभागवत महापुराण। तृतीय स्कंध। षड्विंशो अध्याय)
Leave a Reply