जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि
व्रती को चाहिए की स्नान के पश्च्यात धुले हुए वस्त्र धारण करके आसान पर बैठे आचमन करके स्वस्तिवाचन पूर्वक कलश की स्थापना करे। कलश पर परमेश्वर श्री श्रीकृष्ण का आह्वाहन करके वासुदेव- देवकी, नन्द- यशोदा, बलदेव- रोहिणी,षष्ठी देवी, पृथ्वी, ब्रह्म नक्षत्र – रोहिणी अष्ठमी तिथि की अधिष्ठात्री देवी, स्थान देवता, अश्वत्थामा, बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, व्यासदेव तथा मार्कण्डेय मुनि – इन सब का आह्वाहन करके श्रीहरि का ध्यान करे।
मस्तक पर पुष्प चढ़ा कर निम्न सामवेदोक्त मन्त्र के द्वारा श्रीहरी का पुनः ध्यान करे :
बालं नीलांबु जाभमतिशयरुचिरं स्मेरवक्रांबुजं तं ब्रह्मेशानंतधर्मेः कतिकतिदिवसेः स्तूयमानं परं यत् ॥
ध्यानासाध्यमृषीन्द्रैर्मुनिगणमनुजैः सिद्धसंघैरसाध्ये योगींद्राणामाच्चंत्यमतिशयमतुलं साक्षिरूपं भजेऽहम् ॥
मैं श्याम के समान अभिराम आभा वाले साक्षीस्वरूप बालमुकुंद का भजन करता हूँ, जो अत्यंत सुन्दर हैं तथा जिनके मुखारविंद पर मंद मुस्कान की छटा छा रही है। ब्रह्मा, शेषनाग और धर्म – ये कई कई दिनों तक उन परमेश्वर की स्तुति करते रहते हैं। बड़े बड़े मुनीश्वर भी ध्यान के द्वारा उन्हें अपने वश में नहीं कर पाते हैं। मनु, मनुष्यगण तथा सिद्धों के समुदाय भी उनको रिझा नहीं पाते हैं। योगीश्वरों के चिंतन में उनका नहीं हो पाता है। वे सभी विषयों में सब से बढ़ कर है , उनकी तुलना कांईं नहीं है।
इस प्रकार ध्यान करके और समस्त उपचारों को क्रमशः मंत्रोच्चारण पूर्वक श्रीहरि को अर्पित करे :
१. आसन
आसनं सर्वशोभाढयं सुदत्नमणिनिर्मितम्।
विचित्र च विचित्रेण गृह्यूतां शोभनें हरे ॥
हरे! उत्तम रत्नो तथा मणियों द्वारा निर्मित सम्पूर्ण शोभा से संपन्न तथा विचित्र बेलबूटों से चित्रित यह सुन्दर आसन, आपकी सेवा में अर्पित है। इसे ग्रहण कीजिये
२. वसन
वसनं वह्निशौचं च निार्मितं विश्वकर्मणा ।
प्रत्तस्वर्णखचितं चित्र्रितुं गृह्युतां हरे॥
श्रीकृष्ण ! यह विश्वकर्मा द्वारा निर्मित वस्त्र अग्नि में तपा कर शुद्ध किया गया है। आप इसे स्वीकार करें।
३. पाद्य
पादप्रक्षालनार्थं च स्वर्ण पात्रस्थितं जलम् ।
पवित्रं निर्मलं चारु पाद्ये च गृह्यतां हरे ॥
गोविन्द! आपने चरणों को पखारने के लिए सोने के पात्र में रखा हुआ यह जल परम पवित्र तथा निर्मल है। इसमें सुन्दर पुष्प डाले गए हैं। आप इस पाद्य को स्वीकार करें।
४. मधुपर्क
मधुसर्पिर्दधिक्षीरं शर्करासंयुतं परम् ।
स्वर्णपात्रस्थितं देयं स्रानार्थं गृह्यतां हरे ॥
भगवान् ! मधु, दही, दही, दूध और शक्कर – इन सब को मिला कर तैयार किया गया मधुपर्क स्वर्ण के पात्र में रखा गया है। आप स्नान के लिए इसका उपयोग करें।
५. अर्ध्य
दूर्वाक्षतं शुकृपुष्पं स्वरं छतोयसमन्वितम् ।
चंदनागुरुकस्तृरीसहितं गृह्यतां हरे ॥
हरे ! दूर्वा, अक्षत, श्वेत पुष्प और स्वच्छ जल से युक्त यह अर्ध्य सेवा में समर्पित है। इसमें चन्दन, अगुरु और कस्तूरी भी मिली है। आप इसे ग्रहण करें।
६. आचमन
सुस्वादु स्वच्छतोये च वासितं गंधवस्तुना ।
शुद्धमाचमनीयं च गृह्यतां परमेश्वर ॥
परमेश्वर, सुगन्धित वस्तु से वसित यह शुद्ध, सुस्वादु, एवं, स्वच्छ जल आचमन के योग्य है। आप इसे ग्रहण करें।
७. स्नान
गंधद्रव्यसमायुक्तं विष्णो तैलं सुवासितम् ।
आमलक्या द्रवं चैव स्रानीयं गृह्यतां हरे ॥
श्रीकृष्ण ! सुगन्धित द्रव्य से युक्त एवं सुवासित विष्णु तैल तथा आंवले का चूर्ण सनानुपयोगी द्रव्य के रूप में प्रस्तुत है इसे स्वीकार करें।
८. शय्या
सद्रत्रमणिसारेण रचितां सुमनोहराम् ।
छादितां सूक्ष्मवस्त्रण शय्यां च गृह्मतांहरे ॥
श्री हरे ! उत्तम रत्न एवं मणियों से रचित , अत्यंत मनोहर तथा सूक्ष्म वस्त्र से आच्छादित यह शय्या सेवा में समर्पित है। इसे स्वीकार करें।
९. गंध
चूर्णं च वृक्षभेदानां मूलानां द्रवसंयुतम् ।
कस्तूरीद्रवसंयुक्तं गन्धं च गृह्यतां हरे ॥
गोविन्द ! विभिन्न वृक्षों के चूर्ण से युक्त, नाना प्रकार के वृक्षों की जड़ों के द्रव्य से पूर्ण तथा कस्तूरी रस से मिश्रित यह गंध सेवा में समर्पित है इसे स्वीकार करें।
१०. पुष्य
पुष्पे सुगंधियुक्तं च संयुक्तं कुंकुमेन च सुप्रियं सर्वदेवानां सांप्रेंतं गृह्यूतां ह्रे ।
गृह्यत्स्वस्तृकोक्तं चुमिष्टद्रव्यसमन्वितम्।।
परमेश्वर ! विभिन्न वृक्षों के सुगन्धित तथा सम्पूर्ण देवताओं को अत्यंत प्रिय लगने वाले पुष्प आपकी सेवा में अर्पित हैं। आप इन्हे ग्रहण करें।
११. नैवैद्य
सुपक्फलसंयुक्तं, नैवेद्यं गृह्यतां हरे ।
लड्डुकं मोदकं चेव सर्पिः क्षीरं गुडं मधु ।।
नवोद्धृतं दधि तकं नैवेद्यं गृह्यतां हरे ।
शीतलं शर्करायुक्तं क्षीरस्वादुसुपककम् ।।
गोविन्द ! शर्करा युक्त स्वस्तिक मिठाई तथा अन्य मीठे पदार्थों से युक्त यह नैवैद्य सेवा में समर्पित है। यह सुन्दर पके फलों से युक्त है आप इसे स्वीकार करें।
शक्कर मिलाया हुआ ठंडा एवं स्वादिष्ट दूध, सुन्दर पकवान, लड्डू, मोदक, घी मिलायी हुई खीर, गुड़, मधु , ताजा दही तथा तक्र – यह सब नैवैद्य के रूप में आपके सामने प्रस्तुत है। आप इन्हें ग्रहण करें।
१२ ताम्बूल
तांबूलं भोगसारं च कर्पूरादिसमन्वितम् ।
भक्तया निवेदितमिदं गृह्यतां परमेश्वर ।।
परमेश्वर ! यह भोगों का सारभूत ताम्बूल कर्पूर आदि से युक्त है। मैंने भक्ति भाव से मुखशुद्धि के लिए निवेदन किया है। आप कृपापूर्वक इसे ग्रहण करें।
१३ अनुलेपन
चन्दनागुरु कस्तूरीकुंकुमद्रवसंयुतम् ।
अबीरचूर्णं रुचिरं गृह्यतां परमेश्वर ।।
परमेश्वर ! चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और कुमकुम के द्रव्य से युक्त सुन्दर अबीरचूर्ण अनुलेपन के लिए प्रस्तुत है। कृपया इसे ग्रहण करें।
१४ धूप
तरुभेदरसोत्कपां गंधयुक्तोग्निना सह ।
सुप्रियः सुर्वदेवानूां धूपोऽयं गृह्यतां हरे ।।
हरे ! विभिन्न वृक्षों के उत्कृष्ट गोंद तथा अन्य सुगन्धित पदार्थों के संयोग से बना हुआ यह धुप अग्नि का साथ पाकर सम्पूर्ण देवताओं के लिए अत्यंत प्रिय हो जाता है। आप इसे ग्रहण करें ।
१५ दीप
घोरांधकृारनूाशॆकहेतुरेव शुभावहः ।
सुप्रदीपो दीप्तिकरोदीपोऽयं गृह्यतां हरें ।।
गोविन्द ! अत्यंत प्रकाशमान एवं उत्तम ज्योति का प्रसार करने वाला यह सुन्दर दीप घोर अंधकार के नाश का एकमात्र सेतु है। आप इसे ग्रहण करें।
१६. जलपान
पवित्रं निर्मलं तोये कर्पूरादिसमाँयुतम् ।
जीवनं सर्वबीजानां पानार्थं गृह्यतां हरे ।।
हरे ! कर्पूर आदि से सुवासित यह पवित्र और निर्मल जल सम्पूर्ण जीवों का जीवन है। आप इसे ग्रहण करें।
१७. आभूषण
नानापुप्पसमायुक्तं ग्रथितं सूक्ष्मर्तेतुना ।
शरीरभूषणवरं माल्यं च प्रतिगृह्यताम् ।।
गोविन्द ! नाना प्रकार के फूलों से युक्त तथा महीन डोरे में गुंथा हुआ यह हार शरीर के लिए श्रेष्ठ आभूषण। इसे स्वीकार करें।
इस प्रकार पूजोपयोगी दातव्य द्रव्यों को भेंट करके व्रत के स्थान ने रखा हुआ द्रव्य श्रीहरि के चरणों में समर्पित करे तथा सुनन्द , नन्द, कुमुद, आदि गोप, गोपी, राधिका, गणेश, कार्तिकेय, ब्रह्मा, शिव, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, अष्ट दिक्पाल, समस्त ग्रह, शेषनाग, सुदर्शन चक्र तथा श्रेष्ठ पार्षदगण इन सबका पूजन करके समस्त देवताओं को दंडवत प्रणाम करे तथा भगवान् नाम का कीर्तन करे।
सन्दर्भ : श्री ब्रह्मवैवर्तपुराण। श्री कृष्णजन्म खंड। अध्याय ८
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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