लेख के प्रारम्भ में हम स्पष्ट करना चाहते है हैं कि लेख का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष अथवा समुदाय की भावनाओं को आहत करना नाही है। ना ही हमारा उद्देश्य […]Read more
प्रणव का अभिप्राय उस ॐकार रुपी सेतु से है जो मनुष्य को भवसागर से पार करता है। प्र नाम है प्रकृति से उत्पन्न संसार रुपी महासागर का। प्रणव इसे पार […]Read more
जिन अव्यक्त, निर्गुण, निराकार श्री भगवान, जिनके सब ओर चरण, मस्तक और कंठ हैं, जो इस विश्व के स्वामी तथा विश्व को उत्पन्न करने वाले हैं, उन विश्वरूप परमात्मा का […]Read more
सृष्टि के आरम्भ में श्री भगवान ने देखा की सम्पूर्ण विश्व जल, वायु, तेज़ आदि तत्वों से विहीन है। जगत को इस शून्यावस्था मैं देख कर भगवान ने स्वेच्छा से […]Read more
हिन्दू धर्म में सभी प्राणियों में ईश्वर का सूक्ष्म अंश आत्मा के रूप में माना गया है जिनके जनक स्वयं श्री भगवानहैं परंतु हिन्दू धर्म पपियोंके विनाश के लिए हिंसा […]Read more
श्री भगवान सारे जगत की उत्पत्ति का आधार हैं। वह ही जगत के ईश्वर अर्थात जगदीश्वर हैं। उनको विभिन्न नामों विष्णु, शिव, ब्रह्मा और अनेक देवी देवताओं के नाम से […]Read more