प्रणव का अभिप्राय उस ॐकार रुपी सेतु से है जो मनुष्य को भवसागर से पार करता है। प्र नाम है प्रकृति से उत्पन्न संसार रुपी महासागर का। प्रणव इसे पार […]Read more
जिन अव्यक्त, निर्गुण, निराकार श्री भगवान, जिनके सब ओर चरण, मस्तक और कंठ हैं, जो इस विश्व के स्वामी तथा विश्व को उत्पन्न करने वाले हैं, उन विश्वरूप परमात्मा का […]Read more
सृष्टि के आरम्भ में श्री भगवान ने देखा की सम्पूर्ण विश्व जल, वायु, तेज़ आदि तत्वों से विहीन है। जगत को इस शून्यावस्था मैं देख कर भगवान ने स्वेच्छा से […]Read more