जो मनुष्य अपने पापों का क्षय करके इस संसार सागर से पार जाना चाहते हैं उन्हें तमोगुणीऔर रजोगुणी भूपतियों की उपासना ना करके सत्वगुणी श्री भगवान और उनके उनके अंश […]Read more
श्री परम पिता परमात्मा का दिव्या पुरुष रूप जिसे श्री नारायण कहते हैं अनेक अवतारों का अक्षय कोष हैं । इन्ही से सारे अवतार प्रकट होते हैं। जैसे अगाध सरोवर […]Read more
सृष्टि के आरम्भ में श्री भगवान ने देखा की सम्पूर्ण विश्व जल, वायु, तेज़ आदि तत्वों से विहीन है। जगत को इस शून्यावस्था मैं देख कर भगवान ने स्वेच्छा से […]Read more
श्री भगवान सारे जगत की उत्पत्ति का आधार हैं। वह ही जगत के ईश्वर अर्थात जगदीश्वर हैं। उनको विभिन्न नामों विष्णु, शिव, ब्रह्मा और अनेक देवी देवताओं के नाम से […]Read more
साधकों के भाव के अनुसार भक्तियोग का अनेक प्रकार से प्रकाश होता है, क्योंकि भक्त के स्वाभाव और गुणों के भेद से मनुष्यों के भाव में विभिन्नताएँ आ जाती है। […]Read more
श्री भगवान द्वारा सृष्टि के कार्य में नियुक्त ब्रह्माजी कमलकोष में प्रवेश किया और उसके ही भू:, भव:, और सव: तीन भाग किए । जीवों के भोगस्थान के रूप में […]Read more
हिन्दू धर्म में यज्ञ एवं नित्य कर्म में पशुओं “को” बलिभाग देने का विधान है, पशुओं “की” बलि देने का विधान नहीं है। “बलि‘ शब्द का अंग्रेजी अर्थ निकलता है […]Read more
हम इस विषय में हम अनेकों बार अपने विचार रख चुके हैं परन्तु हिंदु धर्म में साकार और निराकार उपासकों के पृथक पृथक विचारों के कारण यह प्रश्न हमेशा चर्चा […]Read more
परमात्मा का वास्तविक स्वरूप एकरस, शांत, अभय एवं केवल ज्ञानस्वरूप है। वह सत् और असत् दोनो से परे है। समस्त कर्मों के फल भी भगवान ही देते हैं। क्योंकि मनुष्य […]Read more