शिवालय रहस्य – शिव मंदिर में स्तिथ – नंदी जी , कूर्म, गणेश जी, हनुमान जी, बिल्व पत्र, जलधारा की महत्वता
भगवान् शिव के मंदिर भारतवर्ष के प्राय: प्रत्येक गाँव, शहर या ये कहें की प्रत्येक मार्ग पर पाए जातें हैं तो अतिशोय्क्ति नहीं होगी। प्रत्येक शिव मंदिर में नंदी, कूर्म, गणेश जी, हनुमान जी, जलधारा, बिल्वपत्र पाए जातें हैं, अत्यंत प्रेम भाव से इनका पूजन भी किया जाता है परन्तु इनकी महत्वता पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता।
१. नंदी जी – शिवालय में जाते ही सर्वप्रथम नंदी महाराज के दर्शन होते हैं, शिव वाहन, प्रमथ गण होने के साथ साथ नंदी जी ब्रह्मचर्य के प्रतीक हैं। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय हलाहल विषपान के बाद नंदी महाराज ने ध्यानयोग में मग्न शिव जी के कंठ पर हवा छोड़ कर उनकी सेवा की थी। इसलिए शिव जी की ध्यान स्वरुप मूर्ति के सामने नंदी जी सदैव विद्यमान रहते हैं। जैसे शिवजी के वाहन नंदी हैं वैसे ही हमारे आत्मा का वाहन शरीर – काया है। अतः शिवजी को आत्मा एवं नंदी जी को शरीर का प्रतीक समझा जा सकता है। जैसे नंदी की दृष्टि सदैव सदाशिव की और होती है, उसी प्रकार हमारा शरीर आत्माभिमुख बना रहे, यही संकेत समझना चाहिए।
२. कूर्म – नंदी महाराज के उपरांत शिवजी की और आगे बढ़ते हुआ कछुए के दर्शन होते हैं। नंदी जी यदि हमारे स्थूल शरीर के लिए प्रेरक मार्गदर्शक है तो कछुआ सूक्ष्म शरीर अर्थात हमारे मन का। निरंतर शिवजी की और अग्रसर कछुआ हमें संकेत देता है की हम अपने मन को एकाग्र, सुद्रढ़ कर निरंतर भगवान शिव की और अग्रसर रहें, हमारा मन शिवमय रहे, कल्याण का ही चिंतन करे आत्मा के श्रेय हेतु यत्नशील रहेऔर सभी इन्द्रियों को नियंत्रित कर शिवतत्व का ही चिंतन करे।
३. गणेश जी – गौरी पुत्र, प्रथम पूजन योग्य देव होने के साथ ही गणेश जी का आदर्श है, बुद्धि एवं समृद्धि का सदुपयोग। इसीलिए आवश्यक गुण गणेश जी के हाथों में स्थित प्रतीकों द्वारा बताये जाते हैं। अंकुश संयम – आत्मनियंत्रण का, कमल पवित्रता का, पुस्तक – उच्च विचारधारा का एवं मोदक – मधुर स्वाभाव का प्रतीक है। भगवान् की सेवा में आया हुआ कोई भी प्राणी तुच्छ नहीं है यही मूषक प्रतीक है। ऐसे गुण रखने से ही शिवदर्शन की पात्रता प्रमाणित होती है।
४. हनुमान जी – इसी प्रकार रुद्ररूप हनुमान जी का आदर्श है – विश्वहित के लिए तत्परता युक्त सेवा और संयम, यही कारण है हनुमान जी श्री राम की सेवा में सदैव तत्पर रहे, अर्जुन के रथ पर विराजमान ध्वजा में विराजमान रहे। ऐसी भक्ति, सेवा और संयम के द्वारा ही कल्याणमय शिव को प्राप्त किया जा सकता है।
५. शिवालय का भूमि से कुछ ऊंचा होना तथा शिवालय के द्वार का संकीर्ण होना – गणेशजी – हनुमान जी के आदर्शों का पालन करने से भक्त के ह्रदय में अहंकार आ सकता है जो आत्मा -परमात्मा के मिलन में बाधक बन सकता है, इसी बात का स्मरण दिलाने के लिए शिवालय को सोपान से कुछ ऊंचा रखा जाता है तथा द्वार भी संकीर्ण रहता है। शिवालय में प्रवेश करते हुए साधक को अत्यंत सावधानी बरतनी पड़ती है, सर झुका कर, समस्त अहंकार को नष्टकर कर ही शिवतत्व का दर्शन किया जा सकता है।
६. शिवलिंग – शिवालय में स्तिथ आत्मलिंग, ब्रह्म लिंग – विश्वकल्याण में मग्न ब्रह्माकार – विश्व्कार परमात्मा का स्वरुप है। हिमालय सा महान, शांत शिवरूप आत्मा ही भयंकर शत्रुओं के बीच रह सकता है। कालस्वरूप सर्प को को गले लगा कर – ज्ञान -वैराग्य को भी धारण कर सकता है।
७. कपाल, कमंडल, भस्म, डमरू – भगवान् शिव द्वारा धारण किये जाने वाले कपाल, कमंडल आदि पदार्थ संतोषी, तपस्वी, अपरिग्रही जीवन साधना के प्रतीक हैं। भस्म – विनाशशील विश्व में अविनाशी वरण का संकेत है। डमरू निनाद – आत्मानंद की आनंदभूति का प्रतीक है,
८. त्रिदल बिल्वपत्र, शिवजी के तीन नेत्र, त्रिशूल, त्रिपुण्ड आदि – सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण – विश्व के इन तीन आधारभूत गुणों को सम करने का प्रतीक है। यह निर्देश देते हैं की भगवान शिव – त्रिकाय, त्रिलोक और त्रिकाल से भी पर हैं। त्रिदेव यानी ब्रह्मा विष्णु और महेश इन्ही सभी त्रिपरिमाण – त्रियुक्त प्रतीकों से सूचित है।
९. जलधारा – शिवलिङ्ग पर निरंतर टपकने वाली जलधारा जटा में स्थित गंगा जी का प्रतीक है। वह उसी ज्ञान गंगा है स्वरूप है जिसे स्वर्ग की ऋतम्भरा- प्रज्ञा, दिव्य बुद्धि गायत्र- गायत्री अथवा त्रिकाल संध्या भी कहा जाता है। शिव जी पर अविरत टपकने वाली जलधारा की तरह ही साधक पर भी ब्रह्मांडीय चेतना की अमृत धारा- प्रभु कृपा अविरल रूप से बानी रहे ऐसा विशवास रखना चाहिए।
शिवलिंग यदि शिवमय आत्मा है तो उनके साथ छाया की तरह अवस्थित पार्वती जी उस आत्मा की शक्ति हैं। वह संकेत है की कल्याणमय शिवमय आत्मा की आत्म शक्ति भी छाया की तरह उनका अनुसरण करती हैं, प्रेरणा सहयोगिनी बनती है
।।शिवोऽहम, शिवोऽहम, शिव: केवलोऽहम, चिदानन्दरूप:, शिवोऽहम, शिवोऽहम।।
।।ॐ नम: शिवाय।।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।
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