शिवलिंग क्या है? शिवजी की पूजा मूर्ति और लिंग रूप में क्यों होती है?
लिंग शब्द का अर्थ है चिन्ह, प्रतीक।
भगवान शिव क्योंकि परमपिता परमात्मा के अंश है और स्वयं ब्रह्मस्वरूप हैं इसीलिए निष्काम (निराकार) कहे गए हैं। इसी प्रकार से रूपवान होने के कारण उन्हें सकल (साकार) भी कहा गया है। साक्षात परब्रह्म शिवजी सकल और निष्कल परमात्मा के दोनो रूप हैं।
शिवजी के निष्कल – निराकार होने के कारण ही उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ है अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। यही कारण है शिवजी की पूजा सकल रूप – अंग आकर से सहित मूर्ति रूप में और निराकार रूप – अंग आकार से सर्वथा रहित चिन्ह के रूप में की जाती है।
लिंग (निराकार) और लिंगी (साकार) रूप को दर्शाता है।
स्वयं महादेव ने शिव महापुराण में कहा है –
“मेरे दो रूप हैं- सकल और निष्कल। पहले मैं स्तम्भ रूप से उत्पन्न हुआ फिर अपने साक्षात रूप से । ब्रह्मभाव मेरा निष्कल रूप है और महेश्वरभाव सकल रूप। ये दोनो ही मेरे सिद्ध रूप है। पहले मेरी ब्रह्मरूपता का बोध कराने के लिए निष्काम लिंग प्रकट हुआ था। फिर अज्ञात ईशृत्व का साक्षात कराने के निमित्त मैं साक्षात जगदीश्वर ही सकल रूप में तत्काल प्रकट हो गया। अतः मुझमें जो ईशात्व है, उसे ही मेरा सकल रूप जाना चाहिये तथा यह जो मेरा निष्कल स्तम्भ (लिंग या चिन्ह) है, वह मेरे ब्रह्मस्वरूप का बोध कराने वाला है।”
।।ॐ नमः शिवाय ।।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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