ॐकार का क्या महत्व है ? ॐकार जप का क्या लाभ है?
जिन अव्यक्त, निर्गुण, निराकार श्री भगवान, जिनके सब ओर चरण, मस्तक और कंठ हैं, जो इस विश्व के स्वामी तथा विश्व को उत्पन्न करने वाले हैं, उन विश्वरूप परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन करने और उनकी प्राप्ति के लिए परम पुण्यमयी ॐ एकाक्षर का जप करना चाहिए।
ॐ अकार, उकार और मकार इन तीन अक्षरों के रूप में क्रमश: सात्विक, तामसिक और राजसिक इन तीन गुणों का परिचय करवाता है, जिससे इस समस्त सृष्टि का उदय हुआ है। अकार भूलोक, उकार भुवलोक और मकार स्वलोक कहलाता है । इनके सिवा अर्ध मात्रा जो अनुस्वार या बिंदु के रूप में इन सबके ऊपर स्थित है वह निर्गुण है, योगी पुरुषों को ही उसका ज्ञान हो पाता है उसका उच्चारण गांधार स्वर से होता है इसलिए उसे गांधारी भी कहा जाता है ।
ॐ की पहली मात्रा व्यक्त, दूसरी अव्यक्त, तीसरी चिन्हित तथा चौथी अर्धमात्रा परमपद कहलाती है। इसी क्रम से इन मात्राओं को योग भूमि समझना चाहिए। जैसे ॐ कार का उच्चारण मस्तक के प्रति गमन करता है, उसी प्रकार ॐकार मय योगी अक्षर ब्रह्म में मिलकर अक्षर रूप हो जाता है। प्रणव (ॐकार) धनुष है, आत्मा बाण है और ब्रह्म वेधन योग्य उत्तम लक्ष्य है। उस लक्ष्य को अपने चित्त में स्थापित करके बाण की भाँति लक्ष्य में प्रवेश करके तन्मय हो जाना चाहिए।
यह ॐकार ही तीनों लोक, तीनों अग्नि, ब्रह्मा, विष्णु, महादेव एवं ऋग्, साम और यजुर्वेद हैं । ॐकार के उच्चारण से सम्पूर्ण सत और असत का ग्रहण हो जाता है। इस प्रकार यह ॐ कार पूर्ण परब्रहम स्वरूप है।
जो मनुष्य इसका उच्चारण करता है अथवा इसका ध्यान करता है , वह संसार चक्र का त्याग करके त्रिविध बंधनों से मुक्त हो परब्रह्म परमात्मा में लीन हो जाता है।
(संदर्भ – मार्कण्डेय पुराण – अध्याय 42 – श्लोक ३-१५)
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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