हिन्दू धर्म में कितने देवता हैं ? 33 प्रकार के, 33 करोड़, 33,33,333 या फिर 33,333? इन सब गणनाओं का स्रोत क्या है?
यह एक विवादित प्रश्न है जिसके बारे में ज्ञान का सर्वथा अभाव पिछले कुछ वर्षो तक था। वर्तमान काल में समाज में कुछ ज्ञान प्रचारित हुआ है। परंतु उसके स्रोत की जानकारी और सही ज्ञान अभी भी स्पष्ट नहीं है । केवल यही प्रचारित किया जाता है कि कोटि का अर्थ करोड़ नहीं प्रकार है और इस तरह हिन्दू धर्म में 33 प्रकार के देवता हैं।
हिन्दू मानते हैं कि उनके 33 करोड़ देवता हैं यह असत्य मुख्य तौर पर अज्ञानियों, मलेच्छों या अंग्रेज़ी अनुवादकों के द्वारा प्रचारित किया गया है। जिन्होंने ऋग्वेद के मात्र एक श्लोक के आधार पर यह भ्रामकता फैलाई की हिन्दू धर्म के शास्त्र मानते है की हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं परंतु उसी ऋग्वेद के अन्य श्लोकों का या अथर्ववेद या बृहदारणयकोपनिषद के श्लोकों का विश्लेषण करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी।
ऋग्वेद संहिता मंडल 1 सूक्त 45 का श्लोक 2 इस प्रकार है:
श्रु॒ष्टी॒वानो॒ हि दा॒शुषे॑ दे॒वा अ॑ग्ने॒ विचे॑तसः ।
तान्रो॑हिदश्व गिर्वण॒स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा व॑ह ॥
अर्थात :- हे अग्निदेव ! विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न देवगण, हवि दाता के लिए उत्तम सुख देते हैं। हे रोहित वर्ण अश्व वाले (रक्तवर्ण की ज्वालाओं से सुशोभित) स्तुत्य अग्निदेव ! उन तैन्तीस कोटि देवों को यहाँ यज्ञ स्थल पर ले कर आएँ ।
जबकि मंडल 1 के ही सूक्त 34 का श्लोक 11 इस प्रकार है:
आ ना॑सत्या त्रि॒भिरे॑काद॒शैरि॒ह दे॒वेभि॑र्यातं मधु॒पेय॑मश्विना ।
प्रायु॒स्तारि॑ष्टं॒ नी रपां॑सि मृक्षतं॒ सेध॑तं॒ द्वेषो॒ भव॑तं सचा॒भुवा॑ ॥
अर्थात :- हे अश्विनी कुमारों! आप दोनो, तैन्तीस देवताओं के सहित इस यज्ञ में मधुपान के लिए पधारें। हमारी आयु बढ़ायें और हमारे पापों को भली भाँति विनष्ट करें। हमारे प्रति द्वेष की भावना को समाप्त करके सभी कार्यों में सहायक बने।
इसी प्रकार अथर्वेवेद संहिता के कांड 11 सूक्त 5 (ओदन सूक्त) के श्लोक 3 में कहा गया है
“एतस्माद वा ओदनात त्रयस्त्रिंशंत लोकन निर्मीमीत प्रजापति: ।।”
अर्थात :- प्रजापति ने इस महिमाशाली ओदन से तैन्तीस देवों या लोकों को रचना की।
और अथर्वेवेद संहिता के ही कांड 10 सूक्त 7 के श्लोक 13 में कहा गया है
“यस्य त्रयस्त्रिंशंद अंगे सर्वे समाहिता:। स्कम्भ तं बरुहि कतम: सिव्देव स:।।”
अर्थात :-जिस स्कम्भ के अंग में समस्त तैन्तीस देव स्थिर हैं, उसे बताएँ ।
इस प्रकार केवल एक श्लोक के एक शब्द “स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा” के अर्थ का अनर्थ बता कर यह साबित करने की कोशिश की गयी की हिन्दू वेद 33 करोड़ देवताओं की मान्यता को स्वीकार करते हैं। जबकि “स्त्रय॑स्त्रिंशत॒मा” का अर्थ निकलता है 33 कोटि। ‘कोटि’ मतलब ‘करोड़’ भी होता है और ‘श्रेणी’ या ‘प्रकार’ भी परन्तु ऊपर परन्तु ऊपर वर्णित सभी श्लोकों का समान अर्थ निकालने से 33 कोटि का अर्थ केवल ‘ 33 श्रेणी या प्रकार’ की निकाला जा सकता है ’33 करोड़’ नहीं।
उपरोक्त से यह तो स्पष्ट हो गया की हिन्दू धर्म में 33 प्रकार के देवता है । अब प्रश्न यह है कि वेदों में वर्णित 33 देवता कौन हैं?
इस प्रश्न का उत्तर बृहदारणयकोपनिषद के तीसरे अध्याय नवे ब्राह्मण संवाद में मिलता है। शकल्य विदग्ध अत्यंत अभिमानी थे और उन्होंने अभिमान में भर कर याज्ञवल्क से प्रश्न पूछने आरम्भ कर दिए। शकल्य के देवगणो के बारे में पूछने पर याज्ञ ने उनकी संख्या 3303 बतायी और देवताओं के बारे में पूछने पर 33 प्रकार। पुनः प्रश्न पूछने पर याज्ञवल्क्य के कहा 3303 देवगण हैं परंतु देवता केवल 33 हैं । याज्ञवल्क्य ने 33 प्रकार के देवताओं की गणना इस प्रकार बतायी:
8 वसु – सूर्य , चन्द्रमा , नक्षत्र , पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और आकाश ।
11 रूद्र – दस प्राण , ग्यारहवाँ जीवात्मा।
12 आदित्य – 12 महीने।
1 देवराज इंद्र और
1 प्रजापति या ब्रह्माजी
अग्नि पुराण में 33 प्रकार के देवताओं की व्याख्या इस प्रकार है :
8 वसु- आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।
11 रूद्र – हर, बहुरुप, त्रयँबक,अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
12 आदित्य- विष्णु, शक्र, तव्षटा, धाता, आर्यमा, पूषा, विवसान, सविता, मित्र, वरुण, भग और अंशु
1 देवराज इंद्र और
1 प्रजापति या ब्रह्माजी
इस प्रकार 8+11+12+1+1=33 श्रेणी या प्रकार के देवता हुए।
श्री विष्णु पुराण में भी स्पष्ट कहा गया है – 8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, प्रजापति और वषटाकार ये तैन्तीस वेदोक्त्त देवता अपनी इच्छा अनुसार जन्म लें वाले हैं। ( प्रथम अंश, अध्याय 15, श्लोक 137)
अब प्रश्न यह है की 33,333 की संख्या का स्त्रोत क्या है ?
इसका वर्णन श्री विष्णु पुराण के इस श्लोक में मिलता है :
त्रय स्त्रिंशत्सहस्त्रनी त्रयस्त्रिंश्च्चतानी च।
त्रय स्त्रिं शत्त्था देवा पिबंती क्षणदाकरम।।
तैन्तीस हज़ार, तैन्तीस सौ तैन्तीस देवगण चंद्रस्थ अमृत का पान करते है। ध्यान देने योग्य यह है की यहाँ ‘देवता’ का नहीं ‘देवगण’ शब्द का प्रयोग हुआ है । गण का अर्थ है ‘ अनुचर’ या ‘सहायक’ और इसका संदर्भ 33 प्रकार के देवताओं के 33, 333, अनुचरों या गणो के रूप में लिया जा सकता है। जैसे भगवान शिव के प्रमुख गण नन्दी महाराज हैं, विष्णु भगवान के जय और विजय हैं। 33,33,333 की संख्या पूर्णत: कपोल कल्पित है और हिन्दू वेद, पुराण या धर्म शास्त्र इस संख्या को अनुमोदित नहीं करते।
सार रूप में यही कहा जा सकता है की हिन्दू धर्म में 33 श्रेणी या प्रकार के देवता है और 33,333 देवगण या देवताओं के अनुचर हैं परंतु श्री भगवान केवल एक ही शक्ति हैं जो विभिन्न रूपों में अवतरित होते हैं।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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