हिन्दू अपने घर में प्रतिदिन दीप क्यों प्रज्वल्लित करते हैं ? हिन्दू धर्म में भगवान् की उपासना दीप प्रज्वल्लित करके ही क्यों की जाती है ?
समस्त सनातन धर्मियों के गृह में प्रातः और सांय काल में दीप प्रज्वल्लित करने की प्रथा है। किसी भी मांगलिक कार्य का शुभारम्भ भी द्वीप प्रज्वल्लित करके ही किया जाता है।
सनातन धर्म में दीप उस निराकार, निर्गुण, निर्विशेष, अनादि और अनन्त परब्रह्म परमेश्वर का प्रतीक हैं जो समस्त सृष्टि का आधार हैं । दीप आत्मा को परत्मात्मा से जोड़ने या उनकी उपासना करने के लिए प्रज्वल्लित किया जाता है।
श्री ब्रह्मपुराण में भी कहा गया है पूर्ववर्ती प्रलयकाल में केवल ज्योतिपूँजय प्रकाशित होता था जिसकी प्रभा करोड़ों सूर्यों के समान थी । वह ज्योतिर्यमंडल नित्य है और वही असंख्य विश्व का कारण है। वह स्वेछामय, सर्वव्यापी परमात्मा का परम उज्जवल तेज़ है। उसी तेज़ के भीतर मनोहर रूप में तीनों ही लोक विद्यमान हैं।
यही कारण है की दीप प्रज्वल्लित करने के समय निम्न मन्त्र का जाप किया जाता है:
शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरहु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
मैं उस दिव्य दीपज्योतिः की उपासना करता हूँ जो शुभ, कल्याण की प्रदायक है, जो आरोग्यता, धन सम्पदा प्रदान करने वाली है तथा मेरे शत्रुओं का विनाश करती है। दीप ज्योति साक्षात् परब्रह्म है तथा दीप ज्योति ही साक्षात् जनादर्न है, मैं उस दीपज्योति की उपासना करता हूँ तथा दीपज्योति से प्रार्थना करता हूँ की वह मेरे समस्त पाप हर ले।
मैं उस दिव्य दीपज्योतिः की उपासना करता हूँ जो शुभ, कल्याण की प्रदायक है, जो आरोग्यता, धन सम्पदा प्रदान करने वाली है तथा मेरे शत्रुओं का विनाश करती है। दीप ज्योति साक्षात् परब्रह्म है तथा दीप ज्योति ही साक्षात् जनादर्न है, मैं उस दीपज्योति की उपासना करता हूँ तथा दीपज्योति से प्रार्थना करता हूँ की वह मेरे समस्त पाप हर ले।
इसी प्रकार मनुष्य के मन को विकारों से दूर ले जाने के लिए भी दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है । हर सनातन धर्मी प्रभु से यही कामना करता है:
ॐ असतो मा सद्गमय
ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय
ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय
हे ओमकार रुपी प्रभु !
हमें असत्य से बचा कर सत्य का मार्ग दिखाओ।
हमारे मन के अन्दर के अन्धकार और अज्ञानता को मिटा कर ज्योति और सत्यता की और अग्रसर करो। हमें मृत्यु से अमरता की और अग्रसर करो।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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