हमारे देश का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा?
पूर्व काल में भारत वर्ष को अभाजन खंड कहा जाता था । श्री भगवान के आठवें अवतार श्री ऋषभ देव के पुत्रों में महायोगी भरतजी सबसे बड़े तथा सबसे अधिक गुणवान थे। वे भगवान के परम भक्त और भागवद भक्तों के परायण थे । ऋषभ देव जी ने भरतजी को भक्ति, ज्ञान और धर्म की शिक्षा देकर पृथ्वी का पालन करने के लिए उन्हें राजगद्दी पर बैठा दिया और स्वयं विश्व को वैराग्यरूप परमहंस धर्म की शिक्षा देने के लिए विरक्त हो गए। भरतजी के नाम से ही लोग अभाजन खंड को भारत वर्ष कहने लगे।
कुशावृत, इलावृत , ब्रह्म्य्व्रत, विदर्भ, मलय, केतु और क़ीकट इत्यादि भूखंडों का नाम भी भरतजी के भागवत धर्म का प्रचार करने वाले अन्य भाइयों के नाम पर पड़ा है ।
श्रीमद् भागवत महापुराण में कहा गया है :
“अहो भुव: सप्तसमुद्रवत्या द्वीपेशु वर्शेवधिपुण्यमेतत्।
गायन्ती यत्रत्यजना मुरारे: कर्माणि भद्राणयवतारवन्ती ॥”
अर्थात सात समुद्रों वाली पृथ्वी के समस्त द्वीप और वर्षों में यह भारतवर्ष अत्यंत ही पुण्य भूमि है, क्योंकि यहाँ के लोग श्रीहरि के मंगलमय अवतार चरित्रों का गान करते हैं।
इस देश को, जिसका नाम पहले अभाजन खंड था, राजा भरत के समय से ही ‘भारतवर्ष’ कहते है।
॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:॥
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