श्री भगवान के 24 अवतार
श्री परम पिता परमात्मा का दिव्या पुरुष रूप जिसे श्री नारायण कहते हैं अनेक अवतारों का अक्षय कोष हैं । इन्ही से सारे अवतार प्रकट होते हैं। जैसे अगाध सरोवर से असंख्य जलवहिनी निकलती हैं वैसे ही सत्वनिधि के असंख्य अवतार है। ऋषि, देवता, प्रजापति, मनुपुत्र सभी श्रीहरी के अवतार हैं । जब पृथ्वीवासी दैत्यों के अत्याचार से व्याकुल हो उठते हैं, तब युग युग में अनेक रूप धारण करके भगवान उनकी रक्षा करते हैं।
श्रीमद् भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है:
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत !
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम !!
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ॥ साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥
गौस्वामी तुलसीदास जी ने भी श्री रामचरितमानस में कहा है :
जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं और वे ऐसा अन्याय करते हैं तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं।
श्री विष्णु स्वयं परमपिता परमात्मा का सकल रूप हैं। विष्णु दशावतार भी श्री भगवान के २४ अवतारों में ही सम्मिलित किए जाते हैं।
विभिन्न योग और कल्पों में श्री भगवान के निम्नलिखित अवतार बताए गए हैं :
१.सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार: कौमारसर्ग में इन चार ब्राह्मणों के रूप में अवतार ग्रहण करके अत्यंत कठिन अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया
२.सूकर :इस संसार के कल्याण के लिए रसातल में गयी हुई पृथ्वी को निकाल लाने के विचार से सूकर रूप ग्रहण किया।
३.नारद : ऋषियों की सृष्टि में उन्होंने देव ऋषि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सातत्व तंत्र का ( जिसे नारद-पाँचरात्र कहते हैं) उपदेश किया ; उसने कर्मों द्वारा किस प्रकार से मुक्ति मिलती है, इसका वर्णन है।
४.नर-नारायण : धर्म की पत्नी मूर्ति के गर्भ से उन्होंने नर-नारायण के रूप में चौथा अवतार ग्रहण किया। इस अवतार में उन्होंने ऋषि बनकर मन और इंद्रियों का सर्वथा संयम करके बड़ी कठिन तपस्या की।
५. स्वामी कपिल : स्वामी कपिल के रूप में तत्वों का निर्णय करने वाले सांख्य शास्त्र का, जो समय के डर से लुप्त हो गया था, असुरी नामक ब्राह्मण को उपदेश दिया।
६. दत्तात्रेय : छठे अवतार में अत्रि की संतान दत्तात्रेय हुए। इस अवतार मैं उन्होंने अलर्क एवं प्रह्लाद आदि को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया।
७. यज्ञ : रुचि प्रजापति की आकूती नामक पत्नी से यज्ञ के रूप में उन्होंने अवतार ग्रहण किया और अपने पुत्र याम आदि देवताओं के साथ स्वयमभुव मानयवंतर की रक्षा की।
८. ऋषभदेव : राजा नाभि की पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में आठवाँ अवतार ग्रहण किया। इस रूप में उन्होंने परमहँसो का वह मार्ग दिखाया जो सभी आश्रमियों के लिए वन्दनीय है ।
९. राजा पृथु : ऋषियों की प्रार्थना से नवीं बार वे राजा पृथु के रूप में अवतीर्ण हुए । इस अवतार में उन्होंने पृथ्वी की समस्त औषधियों का दोहन किया, इससे यह अवतार सबके लिए बड़ा ही कल्याणकारी हुआ।
१०. मत्स्य : चाक्षुष मन्वन्तर के अंत में जब सारी त्रिलोकि समुद्र में डूब रही थी, तब उन्होंने मत्स्य अवतार धारण किया और पृथ्वी रूपी नौका पर बैठ कर अगले मन्वन्तर के अधिपति वैवस्वत मनु की रक्षा की।
११.कच्छप : जिस समय देवता और दैत्य समुद्र मंथन कर रहे थे तब प्रभु ने ग्यारवहाँ अवतार धारण करके कच्छप रूप में मंद्रांचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया।
१२. धन्वन्तरि : धन्वन्तरि के रूप में अमृत लेकर समुद्र से प्रकट हुए ।
१३. मोहिनी : मोहिनी रूप धारण करके दैत्यों को मोहित करते हुए देवताओं को अमृत पिलाया।
१४. नरसिंह : नरसिंह रूप में प्रभु ने अत्यंत बलवान दैत्य राजा हरिणयकशपु की छाती अपने नखों से इस प्रकार चीर डाली जैसे चटाई बनाने वाला सींक को चीर डालता है ।
१५. वामन : वामन का रूप धारण करके भगवान दैत्य राज बलि के यज्ञ में गए और तीन पग में त्रिलोक को नाप कर बलि का उद्धार किया
१६. परशुराम : परशुराम अवतार में जब उन्होंने देखा की राजा लोग प्रजा के द्रोही हो गए हैं, तब क्रोधित होकर उन्होंने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से शून्य कर दिया।
१७. व्यास : पराशार जी के द्वारा वे व्यास के रूप में अवतीर्ण हुए और लोक कल्याण के लिए वेदरूप वृक्ष की कई शाखायें बना दी ।
१८.श्री राम : श्री राम के रूप में परमात्मा ने रावण और अनेक आतातियों का वध किया। लंका विजय के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में राम राज्य की स्थापना की।
१९-२२. श्री कृष्ण : यदुवंश में बलराम और कृष्ण नाम से प्रकट होकर पृथ्वी का भार उतारा। क्यूँकि श्री कृष्ण को अवतार नहीं अवतारी (स्वयं भगवान) माना जाता है उनके चार अंश गिने गए हैं। (1) केश का अवतार (2) सुतपा तथा प्रशिन पर कृपा करने वाला अवतार (3) संकर्षण -बलराम (4) परब्रह्म। कुछ विद्वान बलराम और श्री कृष्ण के अतिरिक्त हंस और हयग़्रीव को २३ और २४ अवतार मानते हैं
२३. महात्मा बुद्ध : पृथ्वी पर धर्म की पुनः स्थापना की।
२४. कल्कि – कलियुग के अंत में जब राजा प्रायः लुटेरे हो जाएँगे, तब जगत के रक्षक भगवान विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर कल्कि अवतार लेंगे ।
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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