वेद – भाग २
- वेदों की भाषा
- वेदों के भाग
- वेदों का विभाजन और वेदों की शाखाएँ
- वेदों का संक्षिप्त वर्णन
वेदों की भाषा
वेदों की भाषा भी साधारण संस्कृत होते हुए भी अत्यंत सारगर्भित, संक्षित, गम्भीर और भावयुक्त होने के कारण साधारण बुद्धिगम्य नहीं है। सब जीवों के हितकारी वेदों में ज्ञान से सम्बंधित अनन्त विषय रहने पर भी गूढ़ रहस्य छिपे हैं। यही कारण है की वेदों में वर्णित भावों के ना समझ पाने के कारण अल्पबुध्दि मनुष्यों के वेदार्थ समझने में विचलित होने के कारण उनमें मतभेद, संदेह और अनेकों प्रश्नो की उत्पत्ति होती है। वेदों में वर्णित किसी भी एक श्लोक का बिना सन्दर्भ, भाव, ऋषि का ज्ञान किए बिना उसका अर्थ निकलना अत्यंत दुष्कर कार्य है। इसी का लाभ विधर्मी उठा कर, एक मन्त्र के अर्थ का अनर्थ बनाकर वेदों के विषय में जनसाधारण को भ्रमित करते हैं।
परन्तु वास्तव में शब्द ज्ञान रुपी वेद मूर्तिमान ब्रह्मरूप ही हैं। जिस प्रकार एक अद्वितीय परब्रह्म ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव रूप धारण कर, सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय कार्य निर्धारित करते हैं, उसी प्रकार अपौरुषेय वेद भी उपासना, कर्म और ज्ञान के प्रकाश द्वारा, संहिता, ब्राह्मण और उपनिषद रुपी त्रिमूर्ति को धारण कर समस्त संसार का कल्याण करते हैं।
वेदों के भाग
वेद तीन भागों में विभक्त हैं – मन्त्रभाग, ब्राह्मणभाग और आरण्यक।
आरण्यक ही उपनिषद् का मूल है। आरण्यक में ब्रह्म तत्व के जो मूल मन्त्र हैं उनका ही विस्तार उपनिषद् में किया गया है। प्राचीन काल में अनेकों तपोवन थे जहाँ वानप्रस्थाश्रमी वास करते थे और संन्यासी भी वहीं विचरण किया करते थे, अतः अरण्य में ही प्रकाशित होने से आरणयक नाम पड़ा है।
जिसके द्वारा ब्रह्मका सामीप्यलाभ हो उसे उपनिषद् कहते हैं। उपनिषद् मूलतः वानप्रस्थ आश्रमी और सन्यालियों के द्वारा संग्रहित किय गए है। परम पवित्र उपनिषद् समूह मुक्ति पद प्राप्ति के प्रधान साधन हैं तथा ब्राह्मगाभाग और संहिताभाग मुख्यत: कर्म काण्ड और उपासना काण्ड के साधन है ।
यद्यपि सब वेद एक ही हैं, तथापि कर्माधिकार भेदसे भिन्न होने के कारण विभिन्न प्रकार से संकलित किये गये हैं श्रौर ऋक्, यजुः साम श्रौर अथर्व ये भी चार प्रकारकी स्वतन्त्र श्रुतियौं के विभाग कर देनेसे चार वेद कहलाने लगे हैं।
वेदों का विभाजन और वेदों की शाखाएँ
वेद विभाग कर्ताओं के विषय में दो प्रकार के मत मिलते हैं । पहला यह की महर्षि वेद व्यास ने ही एक वेद चार भागों में विभक्त किया है और वेदों का विभाग करने के कारण ही उनका नाम वेदव्यास पड़ा। दूसरा यह की यज्ञ क्रियाओं की सुविधा के लिए अथर्व ऋषि ने वेद विभाग किया था। उन्होंने यज्ञ कार्य में उपयोग होने वाले सूक्त समूह को एक करने अन्य सूक्तों को अलग कर दिया और इस प्रकार अथर्ववेद की उत्पत्ति हुई। शतपथ ब्राह्मण में लिखा है
अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते वायोर्यजुर्वेदः सूर्य्येात्सामवेदः
अर्थात अग्नि से ऋग्वेद, वायु से यजुर्वेद और सूर्य से सामवेद प्राप्त हुए
इसी प्रकार मनुसंहिता में भी लिखा है :
ऋचो यजूंषि चान्यानि सामानि विविधानि च ।
एष ज्ञेयस्त्रिवृद्वेदो यो वेदैनं स वेदवित् ।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, और इनसे भिन्न सामवेद के अनेक मन्त्र यह तीनों ’त्रिवृत्वेद’´जानना चाहिए, जो इस त्रिवृत्वेद अर्थात् सभी वेदों को जानता है वही वस्तुतः ’वेदवेत्ता’ है ।
वेद अनंत है (अनन्ता वै वेदा:) परन्तु वेदों के अनंत होने पर भी इस कल्प के वेदों की संख्या पाई जाती है। पतंजलि महाभाष्य में लिखा है:
चत्वारो: वेदा: सांगा: सरहस्या बहुधा भिन्ना: एकशतमध्वय्युर शाखा: सहत्रवतर्मा सामवेद: एकविंशतिधा बाह्य वृचयं नवधा आथ्रववर्णो वेद:
अर्थात अंग और रहस्य से युक्त चार वेद अनेको शाखाओं में विभक्त हैं। यजुर्वेद की १०१ शाखा, सामवेद की १००० शाखा, ऋग्वेद की २१ शाखा और अथर्ववेद की ६ शाखा हैं।
स्कन्द पुराण के अनुसार एक वेद पहले महर्षि वेदव्यास द्वारा ४ भाग में विभक्त किया गया और उसके पश्चयात उसी के ११३७ विभाग हुए जिनको शाखा कहते हैं। ऋगवेद की २४ शाखा, यजुर्वेद की १०१, सामवेद की १००० और अथर्ववेद की १२ शाखाएं हैं।
परन्तु अत्यंत शोक का विषय है की वेदों की इतनी शाखाएं होने के बाद भी वर्तमान समय में केवल सात या आठ शाखाएं ही मिलती हैं। अनेकों संघर्षो, जातीय हिंसाओं तथा विदेशी आक्रमण के कारण वेदों के प्रधान अंश लुप्त हो गए है, परन्तु अभी भी संहिता इत्यादि जितने भी अंश मिलते है इस काल में विशेष कल्याण कारी हैं।
वेदों का संक्षिप्त वर्णन
ऋग्वेद संहिता दस मंडल में विभक्त है जिसमे ८५ अनुवादक है। अनुवादक समूह में १०२८ सूक्त हैं। सूक्तों के अनेकों भेद हैं जैसे – महसूक्त, मध्यमसूक्त, क्षुद्रसूक्त, ऋषिसूक्त, छंदसूक्त, देवतासूक्त इत्यादि। ऋग्वेद की पांच मुख्य शाखाएं है – आश्वलायन, संख्यायन, शाकल, वासकल और माण्डूक।
यजुर्वेद मुख्यतः दो भागों में विभक्त है – कृष्ण और शुक्ल। ब्राह्मण के मिले जुले होने से दुर्ज्ञेयतावश कृष्ण होता है और दूसरा ब्राह्मण के पृथक होने के कारण शुद्ध होने से शुक्ल कहलाता है
कृष्ण यजुर्वेदसंहिता का नाम तैतरीय संहिता है। विभिन्न ग्रंथों में यजुर्वेद की अनेको शाखाओं का वर्णन किया गया है परन्तु वर्त्तमान समय में यजुर्वेद की १२ शाखा और उपशाखों के नाम मिलते हैं।
शुक्ल यजुर्वेद का दूसरा नाम वाजनेय संहिता है। इसके ऋषि यञवल्क्य हैं। शुक्ल यजुर्वेद में १६०० और इसके ब्राह्मण भाग में ७६०० मन्त्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद की १७ शाखाएं हैं।
सामवेद की १००० शाखों का वर्णन मिलता है परन्तु आजकल सामवेद की केवल कौमुथ शाखा ही मिलती है। सामवेद के दो भाग हैं पूर्व तथा उत्तर। पूर्व संहिता के ६ प्रपाठक हैं इसको सप्त्स्लाम भी कहा जाता है। उत्तरभाग का नाम आरण्य गण है। सामवेद के ब्राह्मण भाग में ८ ब्राह्मण है तथा दो उपनिषद प्रधान है छांदोग्य और केनोपनिषद।
अथर्ववेद के संकलकर्ताओं के विषय में तीन मत प्रचलित है – पहले मत में अथर्व ऋषि, दूसरे मत में अंगिरा ऋषि के वंशधर और तीसरे मत में भृगुवंशियों ने इसका संकलन किया था। अथर्ववेद में अन्य तीनो वेदों के मिले जुले मन्त्र मिलते हैं
इति वेद भाग धर्मशास्त्र।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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