यदि हिंदु धर्म में मंदिर को पवित्र, भगवान् का घर माना जाता है तो हिन्दू मंदिरों (विशेषकर पुराने मंदिरों) पर कामकला के अनेक चित्र क्यों पाए जाते हैं?
यह प्रश्न हमें श्री Ainsley Strom (ऑस्ट्रेलिया) द्वारा हमारे english page पर प्राप्त हुआ जिसका उत्तर हमने अंग्रेजी में दे दिया है परन्तु सभी की शंकाएं दूर करने के लिए हम इसका उत्तर यहाँ भी दे रहे है।
सर्वप्रथम श्री Ainsley Strom जी का धन्यवाद जिन्होंने एक ऐसा प्रश्न पूछा जिसके बारे में कई भ्रांतिया विद्यमान हैं और कुछ अधर्मी तो इन सब चित्रों के माध्यम से हिन्दू धर्म पर अश्लीलता को प्रचारित करने का आरोप भी लगाते हैं। परन्तु इस प्रकार का मिथ्या आरोप लगाने वाले व्यक्ति हिन्दू धर्म के बुनियादी आधार (आपने आप को सांसारिक सुखों से दूर कर, मोक्ष की प्राप्ति) को नहीं जानते और अनेको कहानियां बना कर हिन्दू धर्म की निन्दा करते हैं।
यद्यपि यह सत्य है की मंदिरों की दीवारों पर कामकला के चित्र पाए जाते हैं, परन्तु यह भी सत्य है की यह चित्र केवल मंदिर की बाहरी दीवारों पर अथवा किसी अन्य संरचना में पाए जाते हैं जहाँ भगवान की पूजा, अर्चना नहीं की जाती। यदि ध्यान से देखा जाए तो कभी भी यह चित्र मंदिर के प्रांगण में या गर्भगृह में नहीं पाए जाते – जहाँ भगवान की पूजा होती है।
वास्तव में इन चित्रों का अश्लीलता से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह चित्र दर्शाते हैं की मंदिर से बाहर इस संसार में माया का राज है जहाँ अनेकों विषयों में फंस कर मनुष्य पहले तो आंनद का अनुभव करता है परंतु अंत में पाता है केवल दुख, शोक और विकार। सांसारिक विषयों में फंसा हुआ व्यक्ति इन चित्रों से आकर्षित हो कर सदा दुःख भोगता है और कभी भी प्रभु की समीपता नहीं पा सकता। परन्तु मंदिर के अंदर केवल भगवान का राज है जहाँ सांसारिक विषयों का कोई स्थान नहीं है। प्रभु की समीपता पाने के लिए मनुष्य सभी सांसारिक विषयों से विरक्त होकर मंदिर में प्रवेश करता है और एकाग्र चित्त होकर भगवान् की समीपता पाने का प्रयास, पूजा, अर्चना, जप इत्यादि माध्यमों से कर सकता है।
इसलिए मंदिर में जाकर भगवान् की समीपता पाने के लिए मनुष्य की आंतरिक और बाह्य शुध्दता का प्रावधान है, परन्तु सांसारिक विषयों में फंसा हुआ व्यक्ति जो केवल विषयों में ही सुख का अनुभव करता है इन चित्रों में फंस कर रह जाता है और कभी भी भगवान को प्राप्त कर मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता।
जितात्मन: प्रशान्तस्य परमात्मा समाहित: |
शीतोष्णसुखदु:खेषु तथा मानापमानयो: ||
(श्रीमद भागवत गीता ६.७)
(सरदी-गरमी और सुख-दु:खादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ भली-भाँति शान्त हैं, ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्दघन परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं।)
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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