भक्तियोग और भक्तों के विभिन्न प्रकार
साधकों के भाव के अनुसार भक्तियोग का अनेक प्रकार से प्रकाश होता है, क्योंकि भक्त के स्वाभाव और गुणों के भेद से मनुष्यों के भाव में विभिन्नताएँ आ जाती है। भागवत प्राप्ति के लिए निष्काम निर्गुण भक्तियोग ही उत्तम माना गया है। भक्तों के गुणों के कारण भक्तों को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है :
१. तामस भक्त – जो भेद दर्शी क्रोधी पुरुष हृदय में हिंसा, सम्भव अथवा मात्सर्यका भाव रखकर भगवान से प्रेम करता है , वह तामस भक्त माना गया है।
२. राजस भक्त – जो भक्त विषय, यश और ऐश्वर्य की कामना से प्रतिमा आदि में भगवान का भेदभाव से पूजन करता है, वह राजस भक्त है।
३. सात्विक भक्त – जो व्यक्ति पापों का क्षय करने के लिए , परमात्मा को अर्पण करने के लिए और पूजन करना अपना कर्तव्य समझता है, वह सात्विक भक्त है।
४.निर्गुण भक्त – जिस प्रकार गंगाजी का परवाह अखण्ड रूप से समुद्र की और बहता रहता है, उसी प्रकार भगवान के गुणों के श्रवण मात्र से मन की गति को श्री भगवान चरणो में मोड़ देना तथा श्री भगवान में निष्काम और अनन्य प्रेम होना, यह निर्गुण भक्तों का लक्षण बताया गया है।
निष्काम भक्त दिए जाने पर भी भगवान की सेवा को छोड़ कर सलोक्य (भगवान के नित्यधाम में निवास) , सशीरष्ट (भगवान के समान ऐश्वर्य), सामीप्य ( भगवान की नित्य समीप्ता), सरुपय (भगवान सा रूप) और सायुज्य (भगवान के विग्रह में समा जाना) मोक्ष तक नहीं लेते।
भागवत सेवा के लिए मुक्ति का भी तिरस्कार करने वाला यह भक्ति योग ही परम पुरुषार्थ अथवा साध्य कहा गया है। इसके द्वारा मनुष्य तीनों गुणों को लाँघकर भगवान के भाव को – भगवान के प्रेमरूप को प्राप्त करता है।
निष्काम भाव से श्रद्धा पूर्वक अपने नित्य नैमित्तिक आश्रम धर्म के कर्तव्यों का पालनकर, नित्य प्रति हिंसा रहित क्रिया योग का अनुशठान करने , भगवान की प्रतिमा का दर्शन, स्पर्श, पूजा, स्तुति और वंदन, प्राणियों में भगवान की भावना करने, महापुरुषों का मान, दीनो पर दया, समान स्थिति वालों से मित्रता का व्यवहार, मन की सरलता,
अहंकार का त्याग, आध्यात्म शास्त्रों का श्रवण और भगवान के नामों का उच्च स्वर से कीर्तन करने वाले भक्त का चित् अत्यंत शुद्ध होकर भगवान गुणों के श्रवण मात्र से ही भगवान में लग जाता है ।
जिस प्रकार वायु के द्वारा उड़कर जाने वाला गंध अपने आश्रय से इंद्रियों तक पहुँच जाता है, उसी प्रकार भक्ति योग में तत्पर और राग द्वेष आदि विकारों से शून्य चित्त परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।
।।ॐ नमो भगवते वसुदेवाय:।।
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