Home 2019 February 27 प्रत्येक वेद में कौन सा विशेष गुण है, जो एक को दूसरे से पृथक् करता है, और जिसके कारण वेदों का विशे

प्रत्येक वेद में कौन सा विशेष गुण है, जो एक को दूसरे से पृथक् करता है, और जिसके कारण वेदों का विशेष महत्व स्थापित हुआ है ?

प्रत्येक वेद में कौन सा विशेष गुण है, जो एक को दूसरे से पृथक् करता है, और जिसके कारण वेदों का विशेष महत्व स्थापित हुआ है ?

वास्तव में चारों वेद मिलकर एक ही वेद राशि है। जिस प्रकार सिर, हाथ, पेट और पांव मिलकर शरीर बनता है; किन्तु आत्मा, बुद्धि, मन, प्राण और स्थूल शरीर मिलकर ही एक मनुष्य पूर्ण बनता है; उसी प्रकार ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद मिलकर एक वेद बनते हैं । अतः चार वेदो में ज्ञान दृष्टि से एकता है, परंतु प्रत्येक वेद में अपनी एक सस्वरूप विशेषता स्पष्ट है, जिसके कारण प्रत्येक वेद का अन्य वेदों की अपेक्षा, स्वतंत्र अस्तित्व से प्रकट होता है।

मनुष्य में चार बातें प्रमुख हैं:

 

(१) बुद्धि,

(२) प्राण,

(३) मन,

(४) वाचा

 

बाह्य इन्द्रियों में मनुष्यत्व की विशेषता वागइंद्री से सिद्ध होती है। वागइंद्री अर्थात् वाक्शक्तिके अभाव से मनुष्य की पशुपक्षियों के साथ समानता सिद्ध हो जायगी।

 

आंतरिक इंद्रियों में मन की प्रधानता है, सभी विषयों पर विचार करना, अच्छे बुरे का मनन करना इत्यादि कार्य मन के कारण ही होता है । इसके उपर जीवन की आधार रूप प्राणशक्ति है, जिसके रहने और न रहने से मनुष्य का जीवन या मरण है । इसके ऊपर आत्मा की अपनी शक्ति, जो बुद्धि रूप से प्रसिद्ध है, विराजमान है; यह शक्ति आत्माके साथ हमेशा रहती है, तथा इसका आत्माके साथ कभी वियोग नहीं होता। इन्ही चार शक्तियों की अध्यक्षता के बीच अन्य शक्तियां अपना अपना कार्य करतीं है, इसलिये इनको ग्रहण करने से सब अन्य स्वतः समावित हो जाती हैं।

 

हालाँकि बुद्धि, प्राण, मन और वाणी ये चार शक्तियाँ पशु पक्षियों में भी सूक्ष्म रूप से विद्यमान हैं, परन्तु जिस प्रकार मनुष्य इनसे कार्य ले सकता है, और अपनी तथा समाज की उन्नति कर सकता है, उस प्रकार कोई अन्य प्राणी नहीं कर सकता। इन्ही चार शक्तियों के साथ चार वेदों का संबंध यजुर्वेद अध्याय ३६ के प्रथम मंत्र ने स्वयं जोड़ दिया है:

 

ऋचं वाचं प्रपद्ये मनो यजुः प्रपद्ये साम प्राण प्रपद्ये चक्षुः श्रोत्रं प्रपद्ये।
वागोजः सहौजो मयि प्राणापानौ ।।३६.१।।

 

(१) ऋचं वाचं प्रपद्येमैं वाणी का आश्रय लेकर ऋग्वेद की शरण लेता हूँ,
(२) मनो यजुः प्रपद्ये-मैं का आश्रय लेकर यजुर्वेद की शरण लेता हूँ,
(३) साम प्राण प्रपद्ये-मैं प्राण का आश्रय लेकर सामवेद की शरण लेता हूँ , तथा
(४) चक्षुःश्रोत्रं प्रपद्ये- मैं श्रवणशक्ति का आश्रय लेकर अथर्ववेद की शरण लेता हूँ

 

हम वाणी-रूप ऋग्वेद, मन-रूप यजुर्वेद तथा प्राण-रूप सामवेद की शरण में जाते हैं । वेदज्ञान प्राप्ति के लिए नेत्रों एवं कानों की सामर्थ्य की शरण ग्रहण करते हैं । वेदज्ञान के विस्तार के लिए वाणी का ओज तथा वेदानुशासन के अनुगमन के लिए प्राण-अपान आदि सहित शारीरिक औजस् हमारे अंदर स्थापित हो।

 

इस मंत्र का थोडा सा विचार करने से चारों वेदों के विशेष गुणों की रचना का ज्ञान भी स्पष्ट हो जाता है :-

 

(१) ऋग्वेद वाणी की शुद्धि करनेवाला है। इसलिये इसके मंत्र समुदाय का नाम सूक्त है । सु – उत्तम , उक्त- कथन, सु+उक्त (सूक्त) अर्थात् उत्तम कथन, उत्तम विचार, सुविचार, सुभाषित, पवित्र विचारों के समुदाय का नाम ऋग्वेद है। सुविचारों से वाणीकी शुद्धि होती है। कुविचार को दूर करने और सुविचार को पास करने का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य ऋग्वेद करता है। मनुष्यों के विचार की और वाणी की शुद्धि ऋग्वेद के विभिन्न सूक्तों से होती है ।

 

(२) यजुर्वेद मन की शुद्धि करता है। यजुर्वेद के मंत्र समुदाय का नाम अध्याय है। अध्याय, अध्ययन, अभ्यास, मन के द्वारा होता है। यह मन जागृत अवस्था में सदैव किसी न किसी कार्य में लगा रहता है। इसलिये इसको सुकर्मों में संयुक्त कर शुद्ध करना यजुर्वेद का कर्तव्य है। पवित्र कर्मों से मन को शुद्ध करना यजुर्वेद से होता है।

 

(३) सामवेद प्राण की शक्ति के साथ रहने वाली निर्विकार अंतःकरण की पवित्रता बढाता है। मन, जो जागृति में संकल्पों- विकल्पों में लगा रहता है, उसकी शुद्धि सुकर्मों में संयुक्त होने से यजुर्वेद द्वारा की जा सकती है। परंतु उससे भी सूक्ष्म जो विशेष निर्विकार कल्पना शक्ति मनुष्य के अंदर विराजमान है, जो मन और प्राण के साथ निर्विकार ज्ञान से युक्त होती हुई मनुष्य के अंदर विलक्षण समर्थ उत्पन्न करती है। उसकी पवित्रता उपासना द्वारा होती है जो सामवेद का कर्तव्य है। सामवेद मंत्र समुदाय को सामन्कहते हैं, जिसका आशय चित्तवृत्ति की शांति से है।

 

(३) अथर्ववेद शुद्ध ज्ञान द्वारा बुद्धि और आत्मा की शुद्धि करता है। श्रवण इंद्री के द्वारा ज्ञान बुद्धि के अंदर प्रवेश करता है, और बुद्धि को पवित्र करता है। अथर्ववेद के मंत्र समुदाय का नाम ब्रह्महै । इसलिये अथर्ववेदको ब्रह्मवेदभी कहते हैं।

 

मनुष्य की प्रमुख चार शक्तियों का चार वेदों के साथ संबंध होने के कारण ही प्रत्येक वेद का विशेष महत्व है।

 

।।इति।।

 

।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।

Author: मनीष

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