देवी भगवती दुर्गा जी के सोलह नामों की व्याख्या
वेद के कौथिमि शाखा में जो दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी, सर्वमंगला, अम्बिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती और सनातनी- ये सोलह नाम बताए गए हैं वो सबके लिए कल्याण दायक हैं। इनका वेदोक्त्त उत्तम अर्थ जो स्वयं श्री भगवान ने नारद जी से कहा था वह इस प्रकार है:
१. दुर्गा – दुर्ग शब्द दैत्य, महाविघ्न, भवबन्ध, कर्म, शोक, दुःख, नर्क, यमदंड, जन्म, महान भय, तथा अत्यंत रोग के अर्थ में आता है तथा आ शब्द हंता का वाचक है। जो देवी दैत्यों, और महाविघ्न आदि का हनन करती है, उसे दुर्गा कहा गया है।
२. नारायणी – देवी दुर्गा यश, तेज़ , रूप और गुणों में नारायण के समान है तथा नारायण की ही शक्ति है, इसलिए नारायणी कही गयी है।
३. ईशाना – ईशाना का पदच्छेद है – ईशान + आ । ईशान शब्द सम्पूर्ण सिद्धियों के अर्थ में प्रयुक्त होता है और आ शब्द दाता वाचक है। जो सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली है, वह देवी ईशाना है।
४. विष्णुमाया – पूर्व काल में सृष्टि के समय परमात्मा विष्णु ने माया की सृष्टि की थी और अपनी उस माया द्वारा सम्पूर्ण विश्व को मोहित किया था। वह मायादेवी विष्णु की ही शक्ति है, इसलिए विष्णुमाया कही गयी है।
५. शिवा – शिवा का का पदच्छेद है – शिव + आ । शिव शब्द शिव एवं कल्याण अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा आ शब्द प्रिय और दाता अर्थ में । देवी कल्याण स्वरूपा है, शिव दायिनी हैं और शिवप्रिया भी हैं, इसलिए शिवा कही गयी हैं।
६.सती – देवी दुर्गा सदबुद्धि की अधिश्ठत्रि देवी है। प्रत्येक युग में विद्यमान, पतिव्रता तथा सुशीला हैं। इसलिए नहें सती कहते हैं।
७. नित्या – जैसे श्री भगवान नित्य हैं हैं वैसे ही श्री भगवती नित्या हैं ।
८.सत्या – प्राकृत प्रलय के समय से वे आनी माया से परमात्मा में तिरोहित रहती हैं। ब्रह्मा से लेकर तृण अथवा कीट पर्यन्त सम्पूर्ण जगत कृत्रिम होने के कारण मिथ्या ही है, परंतु दुर्गा सत्यस्वरूपा हैं । जैसे श्री भगवान सत्य हैं वैसे ही प्रकृति देवी भी सत्या हैं।
९. भगवती – सिद्ध, ऐश्वर्य आदि के अर्थ में भग शब्द का प्रयोग होता है । सम्पूर्ण सिद्ध ऐश्वर्यपूर्ण भाग प्रत्येक युग में जिनके भीतर विद्यमान है, वे देवी दुर्गा भगवती कही गयी हैं।
१०. सर्वाणी – जो विश्व के सम्पूर्ण चराचर प्राणियों को जन्म मृत्यु, जरा आदि तथा मोक्ष की भी प्राप्ति कराती हैं , वे देवी अपने इसी गुण के कारण सर्वाणी कही गयी हैं।
११. सर्वमंगला – मंगल शब्द मोक्ष का वाचक है और आ शब्द दाता का । जो सम्पूर्ण मोक्ष देती हैं वही सर्वमंगला हैं। मंगल शब्द का अर्थ हर्ष, सम्पत्ति और कल्याण के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है, जो देवी इन सबकी दात्री हैं वे ही सर्वमंगला नाम से विख्यात हैं।
१२. अम्बिका – अम्बा शब्द माता का वाचक है और वंदन और पूजन अर्थ में भी अम्ब शब्द का प्रयोग होता है। देवी सबके द्वारा पूजित और वन्दित हैं तथा तीनों लोकों की माता हैं, इसलिए अम्बिका कहलाती हैं।
१३. वैष्णवी – देवी विष्णु भगवान की भक्ता, विष्णुरूपा तथा विष्णु की शक्ति हैं। और सृष्टि काल में भगवान विष्णु के द्वारा ही उनकी सृष्टि हुई है, इसलिए उन्हें वैष्णवी भी कहा जाता है।
१४. गौरा – गौर शब्द पीले रंग, निर्लिप्त एवं निर्मल परब्रह्म परमात्मा के अर्थ में प्रयुक्त होता है । उन गौर शब्द वाचय परमात्मा की वे शक्ति है। इसलिए वे गौरी कही गयी हैं। भगवान शिव सबके गुरु हैं और देवी उनकी सती साध्वी प्रिया शक्ति हैं इसलिए गौरी कही गयी हैं।
१५. पार्वती – पर्व शब्द तिथिभेद, पर्वभेद, कल्पभेद तथा अन्याय भेद अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा ती शब्द ख्याति के अर्थ में आता है। उन पर्व आदि में विख्यात होने के कारण उन्हें पार्वती कहा गया है । पर्वन शब्द महोत्सव विशेष शब्द में भी आता है, उसकी अधिशठत्री देवी होने कारण भी उनको पार्वती कहते हैं। देवी पर्वत (गिरिराज हिमालय) की पुत्री हैं, पर्वत पर प्रकट होने के कारण भी उन्हें पार्वती कहते हैं।
१६. सनातनी – सना शब्द का अर्थ है सर्वदा और तनी का अर्थ है विद्यमाना। सर्वत्र और सब काल में विद्यमान होने के कारण वे देवी सनातनी कही गयी हैं।
सर्वप्रथम परम पिता परमात्मा ने सृष्टि के आदिकाल में देवी की स्तुति की थी । उसके पश्चात मधु और कैटभ से पीड़ित हो कर ब्रह्मा जी ने उनकी पूजा की। तीसरी बार त्रिपुरारि महादेव ने त्रिपुर से प्रेरित होकर देवी का पूजन किया । चौथी बार महाऋषि दुर्वासा के शाप से राजलक्ष्मी से भ्रष्ट हुए देवराज इन्द्र ने भक्तिभाव से देवी भगवती की आराधना की और उसके पश्चात मुनींदरों, सिद्धदेन्द्रों, देवताओं तथा श्रेष्ठ महर्षियों द्वारा सम्पूर्ण विश्व में देवी की पूजा होने लगी ।
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
Leave a Reply