दीपावली की मंगलमय शुभ कामनाएं।
आपको और आपके परिवार, मित्रों और सहृदयों को दीपावली की मंगलमय शुभ कामनाएं। परब्रह्म स्वरूपिणी महादेवी महालक्ष्मी, आप पर सदा सर्वदा अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें तथा आपको सिद्धि व् संमृद्धि प्रदान करे।
अथ: इंद्रकृतं महालक्ष्मि अष्टकं:
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥१॥
श्री पीठ पर विराजित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये ! हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥२॥
गरुड़ पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवती महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥३॥
सबकुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दुखों को दूर करने वाली, हे देवा महालक्ष्मी ! आपको प्रणाम है।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥४॥
सिद्धि, बुद्धि, मोक्ष और भोग देने वाली हे मन्त्रपूत भगवती महालक्ष्मी ! आपको सदा प्रणाम है।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥५॥
हे देवी ! आदि अंत रहित महाशक्ति, हे माहेश्वरी ! हे योग से प्रकट हुई महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥६॥
हे देवी ! आप स्थूल सूक्ष्म और महारौद्र रूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े बड़े पापों का विनाश करने वाली हो। हे देवी ! महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥७॥
हे कमल के आसान पर विद्यमान परब्रह्म स्वरूपिणी देवी ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मी ! आपको मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥८॥
हे देवी ! तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और विभिन्न प्रकार से आभूषणों से विभूषित हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त और अखिल लोकों को जन्म देने वाली हे महालक्ष्मी ! आपको मेरा प्रणाम है।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥९॥
जो मनुष्य भक्ति युक्त होकर इस महालक्ष्म्याष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है। वह सारी सिद्धियों और राजवैभव को प्राप्त कर सकता है।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥१०॥
जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है उसके सभी पापों का विनाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है व धन्य धान्य से परिपूर्ण होता है।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याण कारिणी, वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न रहती हैं।
इतीन्द्र कृतं महालक्ष्यष्टकं सम्पूर्णम
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।
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