त्रिलोक क्या हैं ? हिन्दू शास्त्रों में तीनों लोकों की क्या व्याख्या या मान्यता है?
हमारे बंधु श्री राजे त्यागी जी ने एक सूक्ष्म एवं महत्वपूर्ण विषय उठाया। जिसके विषय में समाज में ज्ञान का सर्वथा अभाव है:
हमें बताया जाता है की लोक तीन हैं, पाताल लोक, पृथ्वी लोक एवं स्वर्ग लोक और यही त्रिलोकि या तीन लोक कहे जाते हैं। पाताल में राक्षस, सर्प इत्यादि निवास करते हैं, पृथ्वी लोक पर मनुष्य तथा स्वर्ग लोक में देवता।
परंतु शास्त्रों में सात लोक बताए गए हैं जो की भगवान के एक अंश मात्र हैं और जिनमे समस्त प्राणी निवास करते हैं : भूलोक, भुवलोक, सर्वलोक (जिन्हें भू:, भुव: और सव: कहा जाता है), महलोक, जनलोक, तपलोक और सत्यलोक। भूलोक, भुवलोक, सर्वलोक में गृहस्थ निवास करते है। जनलोक, तपलोक और सत्यलोक में क्रमश: अमृत, क्षेम और अभय के साथ ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और सन्यासी निवास करते हैं।
वामानवतार प्रकरण में भी श्री भगवान ने अपने एक पग से बलि की सारी पृथ्वी नाप ली, शरीर से आकाश और भुजाओं से दिशाएँ घेर ली। दूसरे पग में उन्होंने सर्वग को भी नाप लिया और दूसरा पग ही महलोक, जनलोक और तपलोक से भी ऊपर सत्यलोक में पहुँच गया। तीसरा पग और कोई स्थान ना देख कर बलि ने अपने सिर पर ले लिया।
इसी प्रकार श्रीमद् भागवत महापुराण में पाताल भी सात प्रकार के भूविवर (भूमि के नीचे स्थित लोक) बताए गए हैं : अतल, वितल, सुतल, तलाताल, महातल, रसातल और पाताल। यह एक के एक नीचे दस हज़ार योजन की दूरी पर स्थित हैं । इनके स्वर्ग से भी अधिक, विषय भोग, ऐश्वर्य, आनन्द और धन सम्पत्ति बतायी गयी है।
अतललोक में मय दानव का पुत्र असुर बल रहता है। वितल में भगवान हटकेशवर नाम महादेवजी अपने पार्षद भूत ग़णो के साथ रहते हैं। सुतल में महायशसवी बलि रहते हैं जिन्हें स्वयं श्री भगवान ने भूमि दान के उपरांत प्रसन्न होकर सुतल लोक का राज्य दिया था। तलातल में त्रिपुरा अधिपति दानव राज मय रहता है। महतल में क्रदू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का समुदाय रहता हैं जिनमे कुहक, कलिय, तक्षक और सुषेण आदि प्रधान हैं। रसातल में पाणि नाम के दैत्य और दानव रहते हैं। पाताल में शंख, कालिक, महाशंख, कम्बल आदि बड़े क्रोधी और बड़े फ़नो वाले सर्प रहते हैं ।
इस प्रकार हिन्दू शास्त्र कहते हैं की सृष्टि सात लोकों और सात पाताल लोकों से बनी है। और आश्चर्य की बात यह है की वर्तमान काल में भी पृथ्वी के सात ही भूभाग (7 continents) हैं।
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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