गृहस्थ आश्रम में सुखी रहने का क्या उपाय है? ॐ का उच्चारण क्यों किया जाता है ?
इस संसार में केवल दो ही प्रकार ले लोग सुखी हैं – या तो वो जो अत्यंत अज्ञान ग्रस्त हैं या वो जो बुद्धि आदि से अनंत श्री भगवान को प्राप्त कर चुके हैं।
जो गृहस्थ अपने घर के काम धंधों में उलझे हुए हैं, वो अपने स्वरूप को नहीं जानते, उनके लिए हज़ारों बातें कहने-सुनने एवं सोचने, करने की रहती हैं। उनकी सारी उम्र या तो परिवार प्रसंग आ फिर धन की चिंता या कुटुम्बियों के भरण पोषण में समाप्त हो जाती है। संसार में गृहस्थ व्यक्ति जिन्हें अपना अत्यंत घनिष्ट सम्बन्धी मानता है, वे शरीर, पुत्र, स्त्री आदि कुछ नहीं हैं, असत हैं; परंतु सांसारिक मोहपाश में बँधा हुआ व्यक्ति रात दिन उनको मृत्यु का ग्रास होते हुए भी नहीं चेतता। इस लिए जो गृहस्थ अभय पद को प्राप्त करना चाहता है, उसे तो सर्वात्मा, सर्वशक्तिमान भगवान श्री हरि की लीलाओं का ही श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना चाहिए । मनुष्य जन्म का यही लाभ है कि चाहे जैसे हो – ज्ञान से, भक्ति से अथवा अपने धर्म की निष्ठा से जीवन को ऐसा बना लिया जाए की सुख में दुःख में, जन्म में या मृत्यु में भगवान की स्मृति हमेशा बनी रहे ।
जो लोग इहलोक या परलोक की किसी भी वस्तु की इच्छा रखते हैं या फिर संसार में दुःख का अनुभव करके उससे विरक्त हो गए हैं और निर्भय मोक्ष पद को प्राप्त करना चाहते हैं और योग सम्पन्न सिद्ध ज्ञानियों के लिए भी समस्त शास्त्रों का यही निर्णय है की वे भगवान के नाम प्रेम से संकीर्तन करें। अपने कल्याण साधन के और से असावधान रहने वाले पुरुष की लम्बी आयु भी व्यर्थ बीत जाती है और सावधानी से ज्ञानपूर्वक बिताई हुए क्षण, दो क्षण भी भी श्रेष्ठ हैं, क्योंकि उसके द्वारा अपने कल्याण की चेष्टा तो की जा सकती है।
मृत्यु का समय आने पर भी मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए। उसे चाहिए के वह वैराग्य के शस्त्र से सांसारिक मोह को काट डाले और परम पवित्र ॐ का मन ही मन जाप करे। बुद्धि की सहायता से मनके द्वारा इंद्रियों को उनके विषयों से हटा ले और कर्म की वासनाओं से चंचल हुए मन को विचार के द्वारा रोक कर भगवान के मंगलमय रूप में लगाए।
जब तक मनुष्य श्री भगवान के अभयप्रद चरणरविंदों का आश्रय नहीं लेता, तभी तक उसे धन, घर और बंधूजनो के कारण प्राप्त होने वाले भय, शोक, लालसा, दीनता और अत्यंत लोभ आदि सताते हैं और तभी तक उसे मैं-मेरेपन का दुराग्रह रहता है, जो दुःख का एकमात्र कारण है। जो मनुष्य सब प्रकार के अमंगलों को नष्ट करने वाले भगवान के श्रवण कीर्तन आदि प्रसंगों से इंद्रियों को हटा कर लेश मात्र सुख के लिए दुष्कर्मों में लगे रहते हैं उन्हें विभिन्न प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं।
मुनि या सन्यासी लोग भी यदि भगवान कथा प्रसंग से विमुख रह कर संसार के चक्र में फँसे रहते हैं, उनके लिए भी भगवान की प्राप्ति अत्यंत दुष्कर होती है क्योंकि वे दिन में अनेक प्रकार के व्यापारों के कारण विक्षिप्त चित्त रहते हैं और रात्रि में निद्रा में अचेत रहकर भी तरह तरह के कारण उनकी क्षण क्षण में नींद भंग होती है तथा दैववश उनकी अर्थसिद्धि के सब उद्योग भी विफल होते हैं। भगवान की प्राप्ति का मार्ग केवल गुण श्रवण और नाम संकीर्तन से ही जाना जा सकता है ।
“ॐ” जिनसे सभी गुणो की अभिव्यक्ति होती है, उन अनन्त और अव्यक्त मूर्ति ओंकार स्वरूप परमपुरुष श्री भगवान को नमस्कार है । अत: केवल ॐ के उच्चारण मात्र से ही श्री हरि की प्राप्ति सम्भव है।
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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