क्या हिंदू धर्म भगवान शिव और विष्णु में भेद करता है? क्या शैव और वैष्णव हिंदू होते हुए भी अलग अलग संप्रदाय हैं?
हमारे बंधु श्री राजन जौहर जी को साधुवाद जिन्होने अति महत्वपूर्ण सवाल पूछा:
भक्ति और भक्तों के प्रसंग में ना चाहते हुए भी यह कहना पड़ता है की अपने वर्ग को दूसरे से उपर दिखाने के लिए सनातन धर्म में निराले ही नियम कायम करके विभाजित कर दिया गया है । पहले यह विभाजन केवल शैव और वैष्णव तक ही सीमित था परंतु वर्तमान समय में शक्ति को भी इसमे जोड़ कर हर उपासक अपने ईष्ट को श्रेष्ठ दिखा कर दूसरे के ईष्ट को गौण साबित करने की होड़ में लग गया है ।
पूर्व काल में जो शैव, वैष्णव आदि भक्त सहमत हो कर रहते थे, उनमे परस्पर विरोध होने लगा । यहाँ तक की पुराने ग्रंथों में भी प्रक्षेप कर दिया गया और पुराने के नाम से नये ग्रंथ बना डाले गये ।
वेद, पुराण, ऋषि, महात्माओं ने जिस भक्ति के द्वारा उस अव्यक्त, निराकार परमात्मा की उपासना और सब मनुष्यों में संधर्मिता की बात कही थी, वो केवल माला तिलक पर आ डटी । तुलसी की माला विष्णु प्रिय हो गयी और रुद्राक्ष की शिव प्रिय । वैष्णव भक्त शैव, शिवभस्म, रुद्राक्ष आदि की निन्दा करने लगे और शैव तुलसी और विष्णु तिलक की|
पुराण और शास्त्रों की दृष्टि से शिव और विष्णु भगवान में कोई अंतर नही है । जो शैव शिव और विष्णु में भेद मानते हों वे शैव ही नही हैं और इसी प्रकार जो वैष्णव विष्णु और शिव में भेद करते है वो वैष्णव भक्ति मे मर्म को ही नही समझ पाए ।
परम विष्णु भक्त स्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में कहा है :
शिवद्रोही मम दास कावाहे |
सो नर सप्नेऊ मोहि ना पावे ||
अर्थात जो मेरा भक्त शिव से द्रोह करता है, वो सपने में भी मुझे प्राप्त नही कर सकता |
विष्णु पुराण में भी कहा गया है:
सृष्टिस्तिथ्यन्तकरणी ब्रह्मविष्णुशिवमित्काम्
स संज्ञा यति भगवानेक एव जनार्दन:
अर्थात वह एक ही भगवान जनार्दन जगत की सृष्टि, स्थिति और संहार के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनो संज्ञा को धारण करते है ।
बाणासुर प्रकरण में भी स्वयं श्री विष्णु भगवान ने श्री शिव भगवान से कहा है:
त्वया यद्भयं दत्तं तद्दत्तंखिलं मया ।
मत्तोस्य्विभिन्नमात्मन द्रष्टुमह्र्सि शङ्कर । ।
(आपने जो अभय दिया है वो सब मैने भी दे दिया । हे शंकर आप अपने को मुझ से सर्वथा अभिन्न ना देखें ।)
योस्स्यहन् स त्वन जगद्च्चेदन सदेवसुरमनुष्यं ।
मत्तो नान्य्द्षेष्न यत्तत्त्वान ज्ञातुमिहाहरसि । ।
(आप ये भली प्रकार समझ लें की जो मैं हूँ, वो आप हैं तथा यह संपूर्ण जगत, देव असुर, और मनुष्य आदि कोई भी मुझसे भिन्न नही है ।)
अविद्यामोहिततात्मान: पुरुष भिन्न दर्षिनं: ।
वदन्ति भेदं पश्यन्तिचावयोर्न्तरन । ।
(हे हर जिन लोगों का चित्त अविद्या से मोहित है, वे भिन्न दर्शी पुरुष ही हम दोनो में भेद देखते और बतलाते हैं ।)
शिव पुराण में भी भगवान शिव ने भी कहा है – सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव, और अनुग्रह यह मेरे ही जगत संबंधी कार्य है जो नित्य सिद्ध हैं ।
उपरोक्त से स्पष्ट है की शिव तथा विष्णु में कोई भेद नही है और इसी प्रकार शैव और वैष्णवों में भी परस्पर कोई भेद नही हो सकता । दोनो ही उस अव्यक्त निराकार परब्रह्म की उपासना भिन्न साकार स्वरूप में करते हैं ।
यदि भेद होता तो भगवान शिव, प्रभु श्री राम को वनवास के समय प्रणाम नही करते और प्रभु श्री राम समुद्र पर सेतु निर्माण से पूर्व रामेश्वरम में शिवलिंग बना कर भगवान शिव की उपासना नही करते ।
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।
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