Home 2019 February 27 करवा चौथ व्रत – पत्नी तीर्थ माहात्म्य

करवा चौथ व्रत – पत्नी तीर्थ माहात्म्य

करवा चौथ व्रत – पत्नी तीर्थ माहात्म्य

एक पत्नीव्रत लिए पति तथा पतिव्रत लिए पत्नी की मान्यता केवल हिन्दू सनातन धर्म विवाह पद्धति में ही पायी जाती है । विश्व के किसी भी अन्य समुदाय या समाज में ऐसी विचारधारा नही है – विवाह या तो मात्र अनुबंध है या केवल समझौता। हिन्दू सनातन धर्म में धार्मिक संस्कार होने के कारण ही विवाह प्रक्रिया अविच्छिन्न सम्बंध प्रदान करती है। स्त्री पतिव्रता धर्म का निर्वाह करती है तथा पुरुष एक पत्नी व्रत का संकल्प लेता है।

कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को करवा चौथ का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखकर अपने पति की लम्बी आयु के लिए रात्रि में चन्द्रमा को अर्ध्य दे कर ही अपना व्रत पूर्ण करतीं हैं।

पत्नी के लिए पति तीर्थ है – समृति के इस सिद्धांत से प्राय: सभी परिचित हैं परन्तु शास्त्रों ने पत्नी को भी तीर्थ के समान माना है, जिसकी अवहेलना से धर्म की सिद्धि संभव नहीं होती।

पद्म पुराण भूमि खंड के अध्याय ६१ में धर्म महाराज से स्पष्ट कहा है:

धर्माचार परां पुण्यां साधुव्रत परायणाम।
पतिव्रतरतां भार्यां सुगुणं पुण्य वत्सलाम ।।
तामेवापि परित्यजय धर्मकार्यं पर्यातिय:।
वृथातस्यकृतं सर्वोधर्मौ भवति नान्यथा ।९-१०।

जो धार्मिक आचार और उत्तम व्रत का पालन करने वाली, श्रेष्ठ गुणों से विभूषित, पुण्य में अनुराग रखने वाली तथा पुण्यमयी पतिव्रता को अकेली छोड़ कर धर्म करने के लिए बाहर जाता है, उसका किया हुआ सारा धर्म व्यर्थ हो जाता है।

सर्वाचार प्रभाव्या धर्मसाधन ततपरा ।
पतिव्रतरता नित्यं सर्वदा ज्ञान वत्सला ।।
एवंगुणा भवेद्भार्य यस्य पुण्या महासती ।
तस्यगेहे सदादेवा वास्तिष्ठं तिचम हौजस:।११-१२।

जो सब प्रकार के सदाचार में संलग्न रहने वाली, प्रशंसा के योग्य आचरण वाली, धर्म साधन में तत्पर, सदा पतिव्रत का पालन करने वाली , सब बातों के जानने वाली तथा ज्ञान की अनुरागिनी है, ऐसी गुणवती, पुण्यवती और महासती नारी जिसकी पत्नी हो, उसके घर में सर्वदा देवता निवास करते हैं।

इसी प्रकार महाभारत के अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व के अध्याय ४६ में स्त्रियों के विशेष आदर, सत्कार और दुलार के विषय में कहा गया है :

यदि वै स्त्री न रोचेत पुमांस न प्रमोदयेत।
अप्रमोदात्त पुन: पुंस: प्रजनो न प्रवधर्ते ।४।

पूज्या लालयितव्याश्च स्त्रियों नित्यं जनाधिप ।
स्त्रियों यत्र च पूज्यन्ते रम्यन्ते तत्र देवता ।५।

अपूजितश्च यत्रैता: सर्वस्त्राफला: क्रिया:।
तदा चैतत कुलं नास्ति यदा शोचन्ति जामय:।६।

यदि स्त्री की रूचि पूर्ण ना की जाये तो वह प्रसन्न नहीं रह सकती और उस अवस्था में संतान वृद्धि नहीं हो सकती। अतः सदा ही स्त्रियों का आदर, सत्कार और दुलार करना चाहिए।

जहाँ स्त्रियों का आदर सत्कार होता है वहां देवता प्रसन्नता पूर्वक निवास करते हैं तथा जहाँ इनका अनादर होता है वहां की सारी क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं।

जब कुल की बहु बेटियां दुःख मिलने के कारण शोकमग्न होती हैं तब उस कुल का नाश हो जाता है।

 

इसी प्रकार कश्यप स्मृति में भी कहा गया है:

दाराधीना: क्रिया:सर्वा दारा स्वर्गस्य साधनम।

दान, श्राद्ध आदि जितने भी सत्कर्म हैं , वे सब पत्नी के अधीन हैं। अत: पत्नी स्वर्ग का साधन है।

 

आप सभी को करवा चौथ व्रत की हार्दिक शुभकामनायें।

 

।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:।।

 

Author: मनीष

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