Home 2019 January 09 श्री भगवान कौन हैं ?

श्री भगवान कौन हैं ?

श्री भगवान कौन हैं ?

श्री भगवान सारे जगत की उत्पत्ति का आधार हैं। वह ही जगत के ईश्वर अर्थात जगदीश्वर हैं। उनको विभिन्न नामों विष्णु, शिव, ब्रह्मा और अनेक देवी देवताओं के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीलोक के समस्त प्राणियों में श्री परमपिता परमात्मा का ही सूक्ष्म अंश आत्मा के रूप में विद्यमान है।

पूर्ववर्ती प्रलयकाल में केवल ज्योतिपूँजय प्रकाशित होता था जिसकी प्रभा करोड़ों सूर्यों के समान थी । वह ज्योतिर्यमंडल नित्य है और वही असंख्य विश्व का कारण है। वह स्वेछामय, सर्वव्यापी परमात्मा का परम उज्जवल तेज़ है। उसी तेज़ के भीतर मनोहर रूप में तीनों ही लोक विद्यमान हैं । तीनों लोकों के ऊपर गोलोकधाम है । गोलोकधमाम के दक्षिणभाग में वैकुण्ठ है और उसके वामभाग में शिवलोक है।

गोलोक के भीतर अत्यंत मनोहर ज्योति है, जो परम आह्लधजनक, नित्य परमानंद की प्राप्ति का कारण है। योगी पुरुष योग और ज्ञान दृष्टि से सदा उन्ही का चिंतन करते हैं । वह ज्योति ही परमानन्ददायक, निराकार एवं परात्पर ब्रह्म है।

उस परम ज्योति के भीतर अत्यंत मनोहर रूप सुशोभित होता है, जो नूतन जलचर से समान श्याम है । उसके नेत्र लाल कमल के समान प्रफुल्ल दिखाई देते हैं। उनका निर्मल मुख शरतपूर्णिमा के चंद्रमा की शोभा तिरस्कार करता है । उसके रूप लावण्या पर करोड़ों कामदेव न्योछावर किए जा सकते हैं । वह मनोहर रूप विविध लीलाओ के धाम है।

उनकी दो भुजाएँ हैं। एक हाथ में मुरली सुशोभित है। अधरों पर मंद मुस्कान खेलती रहती है । उनके श्री अंग दिव्य रेशमी पीताम्बर से सुशोभित हैं। आभूषणों के समुदाय उनके अलंकार हैं। उनके सम्पूर्ण अंग चंदन से चर्चित तथा कस्तूरी कुसुम से अलंकृत हैं । उनका श्रीवत्सभूषित वक्षस्थल कांतिमय कौस्तुभ से प्रकाशित है। मस्तक पर उत्तम रतनो के सार तत्व से रचित मुकुट जगमगाते रहते हैं। वह श्याम सुंदर पुरुष रतन्मय सिंहासन पर आसीन हैं और वनमाला धारण किए हुए हैं।

उन्ही को परब्रह्म परमात्मा एवं सनातन भगवान कहते हैं। भगवान सवेच्छामय रूपधारी, सबके आदिकारण, सर्वाधार तथा परात्पर परमात्मा हैं। वह परमात्मा ही निरीह, निर्विकार, परिपूर्णतम था सर्वव्यापी परमेश्वर हैं तथा वे ही रासमंडल में विराजमान, शांतचित परम मनोहर रामेश्वर हैं। मंगल कारी, मंगल योग्य, मंगलमय तथा मंगलदाता हैं। परमानंद की उत्पत्ति, सत्य, अक्षर और अविनाशी हैं। सम्पूर्ण सिद्धियों के स्वामी, सर्वसिद्धरूप तथा सिद्धदाता हैं। प्रकृति से परे विराजमान ईश्वर, निर्गुण, नित्य विग्रह, आदिपुरुष, अजनमा और अव्यक्त हैं।

बहुसंख्य लोगों ने वेद, पुराणों, विविध स्त्रोतों के द्वारा उन्ही का सत्वन किया है।

।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय: ।।

Author: मनीष

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